
2 महीने अस्पताल में रहकर शिल्पा शिंदे की राइटर संतोषी की सेवा, मौत पर फूट फूटकर रोईं
AajTak
'भाभीजी घर पर हैं' के फेमस एक्टर आसिफ शेख ने एक इंटरव्यू में बताया है कि कैसे शो के राइटर मनोज संतोषी के आखिरी समय में शिल्पा शिंदे अपना सब कुछ छोड़कर उनकी सेवा में लगी थी.
'भाभीजी घर पर हैं' के राइटर मनोज संतोषी का कैंसर से लड़ते हुए 23 मार्च 2025 को मृत्यु हो गई. उनके साथ काम करने वाले एक्टर आसिफ शेख ने हाल ही में मनोज संतोषी के बारे में बात की और इस दौरान उन्होंने ये भी बताया की कैसे मनोज संतोषी के आखिरी समय में शिल्पा शिंदे अपना सब कुछ छोड़कर उनकी सेवा में लगी थी.
आसिफ शेख ने 'जूम' को दिए इंटरव्यू में टीवी की अंगूरी भाभी यानी की शिल्पा शिंदे की तारीफ करते हुए कहते हैं, 'शिल्पा का दिल सोने का है. उन्होंने मनोज संतोषी की सेवा के लिए अपना सब कुछ छोड़ दिया था.
हॉस्पिटल के कैंटिन का खाना खाती थी शिल्पा
आसिफ शेख कहते हैं, मैं दो दिन के लिए हॉस्पिटल गया था. उन दोनों दिन शिल्पा ICU के बाहर ही बैठी थी. वहां हॉस्पिटल के कैंटिन में खाना खाने जाती थी, कहीं जाना होता था तो ऑटो से जाती थी वो चाहती थी बस मनोज जल्द से ठीक हो जाए.
दो महीने हॉस्पिटल में ही रही शिल्पा
आसिफ शेख आगे कहते हैं, जब मनोज संतोषी की मौत हुई थी शिल्पा बहुत ज्यादा रोई थी. यहां तक कि उनकी मौत का जिम्मेदार वो खुद को मान रही थी. तब उन्होंने किसी तरह समझाया और सांत्वना दिया था. आसिफ कहते हैं, जब तक मनोज हॉस्पिटल में था तब तक शिल्पा भी अपना घर-बार छोड़कर पूरे दो महीने वहीं रहीं.

रूसी बैले डांसर क्सेनिया रयाबिनकिना कैसे राज कपूर की क्लासिक फिल्म मेरा नाम जोकर में मरीना बनकर भारत पहुंचीं, इसकी कहानी बेहद दिलचस्प है. मॉस्को से लेकर बॉलीवुड तक का उनका सफर किसी फिल्मी किस्से से कम नहीं. जानिए कैसे उनकी एक लाइव परफॉर्मेंस ने राज कपूर को प्रभावित किया, कैसे उन्हें भारत आने की इजाजत मिली और आज वो कहां हैं और क्या कर रही हैं.

शहनाज गिल ने बताया कि उन्हें बॉलीवुड में अच्छे रोल नहीं मिल रहे थे और उन्हें फिल्मों में सिर्फ प्रॉप की तरह इस्तेमाल किया जा रहा था. इसी वजह से उन्होंने अपनी पहली फिल्म इक कुड़ी खुद प्रोड्यूस की. शहनाज ने कहा कि वो कुछ नया और दमदार काम करना चाहती थीं और पंजाबी इंडस्ट्री में अपनी अलग पहचान बनाना चाहती थीं.

ओटीटी के सुनहरे पोस्टर भले ही ‘नई कहानियों’ का वादा करते हों, पर पर्दे के पीछे तस्वीर अब भी बहुत हद तक पुरानी ही है. प्लेटफ़ॉर्म बदल गए हैं, स्क्रीन मोबाइल हो गई है, लेकिन कहानी की कमान अब भी ज़्यादातर हीरो के हाथ में ही दिखती है. हीरोइन आज भी ज़्यादातर सपोर्टिंग रोल में नज़र आती है, चाहे उसका चेहरा थंबनेल पर हो या नहीं. डेटा भी कुछ ऐसी ही कहानी कहता है.










