हिंदुस्तान में अल्पसंख्यकों का दर्जा मिला हुआ है यहूदियों को, सीख चुके मराठी और तेलुगु भाषा
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आम सोच है कि यहूदी आबादी सिर्फ इजरायल में बसी हुई है, या फिर पश्चिमी देशों में. लेकिन भारत में भी यहूदी कम्युनिटी रहती है. बंगाल से लेकर केरल तक फैला ये समुदाय 1940 के दशक में अच्छी-खासी संख्या में था, लेकिन धीरे-धीरे ये घटकर काफी कम रह गए. यहां तक कि इन्हें हिंदुस्तान की सबसे छोटी माइनोरिटी में गिना जाता है.
आज से करीब 3 हजार साल पहले यहूदियों ने केरल के मालाबार तट से भारत में एंट्री ली. उस दौर का यहूदी राजा सोलोमन, जिसे सुलेमान भी कहा जाता था, हिंदुस्तान के साथ व्यापार में खासी दिलचस्पी रखता. यहूदियों को भारत से मसाले और रेशम चाहिए था. बदले में वे सोना देने को तैयार थे. धीरे-धीरे ये रिश्ता मजबूत होता लगा. यहां तक कि बाद में जब दुनिया के सारे यहूदी एक जगह इकट्ठा होने लगे, तब भी हिंदुस्तान में काफी सारे लोग बचे रह गए. उनका धर्म और रीति-रिवाज भले अलग थे, लेकिन वे इसे अपना देश मानने लगे.
साल 1940 के दौरान भारत में इनकी संख्या करीब 50 हजार थी. देश में तब आजादी के लिए संघर्ष चल रहा था. इसी दौर में ज्यादातर यहूदी अमेरिका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम और इजरायल की तरफ जाने लगे.
फिलहाल कौन से यहूदी बाकी हैं बेने इजराइल- इसका मतलब है इजराइल के बच्चे. ये करीब 22 सौ साल पहले जुडिया से भारत आए शरणार्थी हैं. तब वहां रोमन शासक आ गए थे, और मूल निवासियों को परेशान किया हुआ था. भारत पहुंचे रिफ्यूजी महाराष्ट्र में जाकर बस गए. अब भी इस समुदाय के करीब साढ़े 3 हजार लोग मुंबई समेत महाराष्ट्र के कई इलाकों में रहते हैं. ये भारत में इनकी सबसे बड़ी आबादी है.
कोचीन के यहूदी ये टुकड़ा भारत कैसे और कब आया, इसपर इतिहासकार अलग-अलग बातें करते हैं. ज्यादातर का मानना है कि ये लोग व्यापार के लिए मालाबार तट से आए थे, और यहीं बस गए. धीरे-धीरे इन्होंने हिब्रू भाषा के साथ लोकल भाषा भी सीख ली और मलयालम भी तेजी से बोलने लगे. अब यहां लगभग 100 यहूदी ही होंगे, जबकि बाकी लोग इजरायल पलायन कर चुके.
एक समूह बगदादी यहूदियों का ये भी व्यापार के इरादे से हिंदुस्तान आए, लेकिन अपने यहां चलती उथल-पुथल की वजह से यहीं ठहर गए. ज्यादातर लोग 18वीं सदी में मुंबई में बसे. इन्होंने तेजी से लोकल भाषाएं सीखीं और व्यापार में आगे निकल गए. हालांकि ये दूसरी कम्युनिटी से मेलजोल कम ही रखते हैं.

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