हार के बाद भी स्वामी प्रसाद पर अखिलेश मेहरबान, MLC बनाकर सपा क्या देना चाहती है संदेश?
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विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी छोड़कर सपा में आने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य को अखिलेश यादव ने विधान परिषद भेजने का फैसला किया है. स्वामी प्रसाद मंगलवार को एमएलसी के लिए नामांकन पत्र दाखिल करेंगे. हालांकि, सपा ने अभी एमएलसी चुनाव के कैंडिडेट की लिस्ट जारी नहीं की है, लेकिन स्वामी प्रसाद का नाम तय कर लिया गया है.
उत्तर प्रदेश विधान परिषद के लिए समाजवादी पार्टी ने भले ही अपने कैंडिडेट्स की लिस्ट जारी न की हो, लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्य को हरी झंडी दे दी है. पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद ने पर्चा खरीद लिया है और मंगलवार को अपना नामांकन दाखिल करेंगे. स्वामी प्रसाद यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी छोड़कर सपा में आए थे, लेकिन कुशीनगर की फाजिलनगर सीट से जीत नहीं सके. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर स्वामी प्रसाद पर अखिलेश यादव क्यों मेहरबान हैं और एमएलसी बनाकर क्या सियासी समीकरण साधने की रणनीति है?
सपा को चार एमएलसी सीटें मिलेंगी
यूपी के 13 विधान परिषद (एमएलसी) सदस्यों का कार्यकाल 6 जुलाई को खत्म हो रहा है, जिसके चलते 20 जून को चुनाव है. इन 13 एमएलसी सीटों के लिए 9 जून तक नामांकन होने हैं. सूबे की विधानसभा के सदस्यों के आधार पर बीजेपी को 9 और सपा को 4 सीटें मिलनी तय है. ऐसे में सपा के कोटे से स्वामी प्रसाद मौर्य और सोबरन सिंह यादव का विधान परिषद में जाना लगभग तय माना जा रहा है. इसके अलावा अखिलेश यादव एक सीट अपने सहयोगी ओम प्रकाश राजभर के बेटे को दे सकते हैं तो एक सीट पर किसी दलित को उच्च सदन भेजने की प्लानिंग है.
स्वामी प्रसाद को एमएलसी भेज रही सपा
बीजेपी छोड़कर सपा में आने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य भले ही 2022 का विधानसभा चुनाव हार गए, लेकिन अखिलेश उन्हें किसी भी सूरत में अपने से दूर नहीं करना चाहते हैं. अखिलेश इस तरह स्वामी प्रसाद मौर्य को उच्च सदन भेजकर गैर-यादव ओबीसी समुदाय को बड़ा संदेश देंगे ताकि 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी अपने गैर यादव ओबीसी की नई रणनीति का फायदा ले सकें. इसीलिए स्वामी प्रसाद को एमएलसी बनाने का दांव चला है.
बता दें कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने यूपी की सियासत में 80 के दशक में कदम रखा है. स्वामी प्रसाद मौर्य 'बुद्धिज्म' को फॉलो करते हैं. डॉ. अंबेडकर और कांशीराम के राजनीतिक सिद्धांतों को मानने वाले नेताओं में स्वामी प्रसाद शामिल हैं, जिसके चलते उनकी पूरी सियासत दलित-ओबीसी केंद्रित रही. स्वामी प्रसाद ने लोकदल से अपना सियासी सफर शुरू किया और बसपा में रहते हुए राजनीतिक बुलंदियों को छुआ.
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