
हाजी मलंग दरगाह पर महाराष्ट्र में क्यों उबाल? हिंदू पक्ष करता है मंदिर होने का दावा... जानें इसकी पूरी कहानी
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वर्ष 1996 में, वह 20,000 शिवसैनिकों के साथ दरगाह पर पूजा करने के लिए निकले. उस वर्ष तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर जोशी के साथ-साथ शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे भी पूजा में शामिल हुए थे. तब से शिवसेना और दक्षिणपंथी समूह इस संरचना को 'श्री मलंगगढ़' के नाम से संबोधित करते हैं.
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने 2 जनवरी को कहा था कि वह सदियों पुरानी हाजी मलंग दरगाह की 'मुक्ति' के लिए प्रतिबद्ध हैं. दक्षिणपंथी समूह इस दरगाह के मंदिर होने का दावा करते हैं. यह दरगाह समुद्र तल से 3000 फीट ऊपर माथेरान की पहाड़ियों पर मलंगगढ़ किले पास स्थित है. यहां यमन के 12वीं शताब्दी के सूफी संत हाजी अब्द-उल-रहमान की दरगाह है, जिन्हें स्थानीय लोग हाजी मलंग बाबा के नाम से जानते हैं. यहां 20 फरवरी को हाजी मलंग की जयंती के लिए विशेष तैयारियां की जा रही हैं.
कल्याण में स्थित सूफी संत के अंतिम विश्राम स्थल तक पहुंचने के लिए दो घंटे की घुमावदार चढ़ाई करनी पड़ती है. दरगाह के ट्रस्टियों में से एक चंद्रहास केतकर ने कहा, 'जो कोई भी यह दावा कर रहा है कि हाजी मलंग दरगाह एक मंदिर है, वह राजनीतिक लाभ के लिए ऐसा कर रहा है'. चंद्रहास केतकर का परिवार पिछली 14 पीढ़ियों से इस दरगाह की देखभाल कर रहा है. 1980 के दशक के मध्य में, स्थानीय शिवसेना नेता आनंद दिघे ने इस स्थान को नाथ पंथ से संबंधित एक प्राचीन हिंदू मंदिर बताकर दरगाह का विरोध शुरू किया था.
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने दरगाह को लेकर क्या कहा?
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने ठाणे जिले में 'मलंगगढ़ हरिनाम महोत्सव' में अपने संबोधन के दौरान कहा, 'मलंगगढ़ के प्रति आपकी भावनाएं मुझे भली-भांति ज्ञात हैं. यह आनंद दिघे ही थे जिन्होंने मलंगगढ़ के मुक्ति आंदोलन की शुरुआत की, जिससे हमने 'जय मलंग श्री मलंग' का जाप शुरू किया. हालांकि, मुझे आपको बताना होगा कि कुछ ऐसे मामले होते हैं जिनकी सार्वजनिक चर्चा नहीं की जाती. मैं मलंगगढ़ की मुक्ति के बारे में आपकी गहरी धारणाओं से अवगत हूं. मैं यह बता दूं कि एकनाथ शिंदे तब तक चुप नहीं बैठेगा, जब तक वह आपकी इच्छाएं पूरी नहीं कर देता'.
सियासी लाभ के लिए हो रही बयानबाजी- दरगाह के ट्रस्टी
चंद्रहास केतकर के मुताबिक, '1954 में, हाजी मलंग के प्रबंधन पर केतकर परिवार नियंत्रण से संबंधित एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए टिप्पणी की थी कि दरगाह एक समग्र संरचना थी, जिसे हिंदू या मुस्लिम कानून द्वारा शासित नहीं किया जा सकता है. इसे केवल अपने स्वयं के विशेष रिवाज या ट्रस्ट द्वारा निर्धारित नियमों के तहत शासित किया जा सकता है. पार्टियां और उसके नेता अब केवल अपने वोट बैंक को आकर्षित करने और राजनीतिक मुद्दा बनाने के लिए इसे उछाल रहे हैं'. हर साल हजारों भक्त अपनी 'मन्नत' लेकर दरगाह पर आते हैं'.

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