
सदियों पुराना यमुना और लाल किला का रिश्ता... दिल्ली में मुगलों के अर्श से फर्श तक पहुंचने का गवाह है 'यमुना गेट'
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राजधानी दिल्ली के कई इलाकों में यमुना का पानी भर गया है. यमुना का मटमैला पानी लाल किला की लाल दीवारों को भी छूकर बह रहा है. यमुना का इतना करीब बहना लाल किला के लिए कोई नई बात नहीं है. जब लाल किला की नींव रखी गई थी, तब भी यमुना उसके करीब ही बह रही थी.
'खतरे के निशान'...अमूमन जुलाई-अगस्त के महीने में खबरों की दुनिया में इस वाक्य के इस्तेमाल की खपत बढ़ जाती है. बस इसके आगे या फिर पीछे जोड़ने होते हैं नदियों के नाम. जैसे मौजूदा समय में दिल्ली में बहने वाली यमुना के लिए इसका खूब इस्तेमाल हो रहा है. यमुना खतरे के निशान से इतना ऊपर बह रही है कि राजधानी दिल्ली के कई हिस्सों में इसका पानी भर गया है. लाल किले की लाल दीवारों को छूते हुए यमुना का मटमैला पानी बह रहा है. जिस यमुना के किनारे 1638 में लाल किला की नींव रखी गई थी. वो यमुना एक बार फिर से लाल किले के करीब बह रही है.
चूंकि यमुना और लाल किला का रिश्ता करीब 385 वर्ष पुराना है. इसलिए लाल किले के पास बह रही यमुना अपने सैकड़ों वर्ष पुराने बहाव के मार्ग पर है. वो ना तो किसी के घर में घुस रही है और ना ही किसी सड़क पर बह रही है. वो अपने पुराने मार्ग पर लौटी है... तो बढ़ते जलस्तर के बीच यमुना और लाल किला के रिश्ते की एक छोटी सी कहानी सुन लीजिए.
रसूख और रुखसती का गवाह यमुना गेट
लेखिका राना सफ्वी अपनी किताब शाहजहानाबाद: द लिविंग सिटी ऑफ ओल्ड दिल्ली में लिखती हैं कि साल 1648 में मुगल बादशाह शाहजहां ने जब अपनी राजधानी आगरा से दिल्ली स्थांतरित की, तो वो सबसे पहले नवनिर्मित लाल किले में पहुंचे. इस भव्य किले में उन्होंने जलमार्ग से प्रवेश किया था. इसके करीब 200 साल बाद साल 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ असफल विद्रोह के बाद जब आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर ने उसी जल मार्ग वाले दरवाजे का इस्तेमाल लाल किले से भागने के लिए किया, तो इतिहास का एक चक्र अंजाम तक पहुंचा था. लाल किले में मुगल साम्राज्य का आगाज और उसके रसूख के रुखसती एक ही दरवाजे से हुई और वो है यमुना गेट.
यमुना गेट और उसका नाम लाल किले का लाहौरी गेट और दिल्ली गेट काफी प्रसिद्ध हैं, लेकिन यमुना गेट के बारे में ज्यादा बात नहीं की जाती है. यमुना गेट (खिजरी दरवाजा). ये दरवाजा उस सड़क पर है, जिसे हम लाल किले के पिछले हिस्से के रूप में जानते हैं. इस खिजरी गेट का नाम जल के सिंधी संत ख्वाजा खिज्र के नाम पर रखा गया था. उन्हें झूलेलाल के नाम से भी जाना जाता था. सिंध के हिंदू और मुस्लिम दोनों उनका बेहद ही सम्मान करते थे. पहले वाले उन्हें भगवान के रूप में देखते थे. जबकि दूसरे उन्हें एक संत मानते थे. उन्हें दरिया शाह 'जिंदा पीर' के नाम से भी जाना जाता है.
मुगलों के लिए बेहद अहम थी यमुना

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