श्रीलंका को कच्चातिवु द्वीप देकर भारत को क्या मिला? पूर्व डिप्लोमैट ने बताया
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श्रीलंका में भारत के राजदूत रहे अशोक कांथा का कहना है कि कोई भी समझौता एकतरफा नहीं होता है. आपको सब कुछ नहीं मिलेगा. समझौते के तहत कुछ देना होता है और कुछ लेना होता है. इस संधि की मदद से श्रीलंका के साथ समुद्री सीमा विवाद के साथ-साथ अन्य विवादों को भी सुलझाया गया.
तमिलनाडु के रामेश्वरम से 12 मील दूर स्थित कच्चातिवु द्वीप एक बार फिर चर्चा में है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा है कि कांग्रेस ने जानबूझकर कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को दे दिया. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा है कि नेहरू चाहते थे कि जितनी जल्दी हो सके, इससे छुटकारा मिल जाए.
भारत के प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री की ओर से कच्चातिवु द्वीप को लेकर दिए गए बयान पर श्रीलंका की सरकार ने अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. हालांकि, वहां की स्थानीय मीडिया ने प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर की आलोचना की है.
1974 में तत्कालीन इंदिरा गांधी की सरकार में हुए एक समझौते के तहत कच्चातिवु श्रीलंका को दे दिया गया था. भारत और श्रीलंका के पूर्व डिप्लोमैट्स ने बताया है कि श्रीलंका को कच्चातिवु द्वीप देकर भारत को क्या मिला.
द्विपक्षीय संबंधों को ध्यान में रखते हुए हुआ था समझौताः पूर्व श्रीलंकाई डिप्लोमैट
अंग्रेजी अखबार 'इंडियन एक्सप्रेस' ने अपनी एक रिपोर्ट में श्रीलंका और भारत के पूर्व राजनयिकों के हवाले से लिखा है कि 1970 के दशक में इंदिरा सरकार द्वारा यह समझौता सद्भावना में किया गया था. जिसके तहत दोनों देश ने कुछ पाया और कुछ खोया. श्रीलंका के एक पूर्व डिप्लोमैट का कहना है कि दोनों देशों ने समझौते पर बातचीत करते हुए अपने-अपने रणनीतिक द्विपक्षीय संबंधों के सभी पहलुओं को ध्यान में रखा था.
भारत में श्रीलंका के डिप्लोमैट रहे एक अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर कहा कि यह समझौता उस समय की वास्तविकताओं के आधार पर हुआ एक लेन-देन था. इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच समुद्री सीमा तय करना था. दोनों देश विवादों को सुलझाते हुए आगे बढ़ना चाहते थे. यह समझौता अच्छी मंशा के साथ किया गया था.