
'शिक्षा लाभ कमाने का जरिया नहीं', ट्यूशन फीस बढ़ाने पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया ये फैसला
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आंध्र प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में ट्यूशन फीस बढ़ाकर 24 लाख रुपये सालाना करने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शिक्षा लाभ कमाने का जरिया नहीं है और ट्यूशन फीस हमेशा सस्ती होनी चाहिए. इसके साथ ही न्यायालय ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा.
देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को शिक्षा से जुड़े मामले पर अहम फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि शिक्षा लाभ कमाने का जरिया नहीं है और ट्यूशन फीस हमेशा सस्ती होनी चाहिए. कोर्ट ने ये बात आंध्र प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में ट्यूशन फीस बढ़ाने के फैसले पर कही. इसके साथ ही न्यायालय ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश को बरकरार रखा जिसमें मेडिकल कॉलेजों में ट्यूशन फीस बढ़ाकर 24 लाख रुपये सालाना किए जाने के राज्य सरकार के फैसले को रद्द कर दिया गया था.
दरअसल, आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार द्वारा मेडिकल कॉलेजों में ट्यूशन फीस बढ़ाकर 24 लाख रुपये सालाना किए जाने के फैसले को रद्द कर दिया गया था, जिसे अब सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा है. सुप्रीम कोर्ट ने साथ में याचिकाकर्ता पर पांच लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया. न्यायमूर्ति एम. आर. शाह और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने याचिकाकर्ता नारायण मेडिकल कॉलेज और आंध्र प्रदेश पर पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया. यह राशि छह सप्ताह के अंदर न्यायालय की रजिस्ट्री में जमा करानी होगी.
"ट्यूशन फीस हमेशा सस्ती होनी चाहिए"
पीठ ने कहा, "फीस (ट्यूशन) बढ़ाकर 24 लाख रुपये सालाना करना, यानी पहले से तय की गई फीस से सात गुना अधिक, बिल्कुल भी उचित नहीं है. शिक्षा लाभ कमाने का व्यवसाय नहीं है. ट्यूशन फीस हमेशा सस्ती होनी चाहिए." पीठ ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ मेडिकल कॉलेज द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की.
पीठ ने कहा कि ट्यूशन फीस का निर्धारण या समीक्षा करते समय पेशेवर संस्थान का स्थान, पेशेवर पाठ्यक्रम की प्रकृति, उपलब्ध बुनियादी ढांचे की लागत जैसे कई कारकों पर प्रवेश एवं शुल्क नियामक समिति द्वारा विचार किया जाना आवश्यक है. उसने कहा कि कॉलेज प्रबंधन को सरकार के अवैध आदेश के अनुसार एकत्र की गई राशि को अपने पास रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.

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