
शाहरुख की 'डंकी' से लेकर इरफान की 'द नेमसेक' तक, इन फिल्मों में दिखा अवैध प्रवासियों का दर्द
AajTak
अमेरिका में इस समय कई अवैध प्रवासियों को उनके देश डिपोर्ट किया जा रहा है. बॉलीवुड में भी अभी तक अवैध प्रवासियों के विषय पर कई सारी फिल्में बन चुकी है जिसमें उनके स्ट्रगल को दर्शाया गया है. आप भी देखिए कि वो कौन-सी फिल्में हैं जिनमें अवैध प्रवासियों से जुड़ा मुद्दा दिखाया गया है.
अमेरिका में इस समय कई अवैध प्रवासियों को उनके देश डिपोर्ट किया जा रहा है. वो लोग जो गलत तरीके से देशो में प्रवेश करके वहां अवैध तरीके से रह रहे थे, अब आखिरकार अपने देश वापस जा रहे हैं.
बॉलीवुड में अभी तक कुछ फिल्में ऐसी बनाई गई हैं जिसमें अवैध तरीके से घुसपैठ करने वाले लोगों की परेशानियों को बहुत अच्छे से दिखाया गया है. आज हम आपको उन फिल्मों के बारे में विस्तार से बताने की कोशिश करेंगे.
1. डंकी (2023)
शाहरुख खान, तापसी पन्नू स्टारर फिल्म 'डंकी' की कहानी पूरी तरह से अवैध प्रवासियों के स्ट्रगल पर आधारित है. फिल्म में पंजाब के कुछ लोग लंदन में अवैध तरीके से घुसपैठ करने की कोशिश करते हैं. इस प्रक्रिया में वो एक डंकी रूट की मदद लेते हैं, और लंदन पहुंच जाते हैं. मगर उन्हें पुलिस कैसे भी करके पकड़ ही लेती है. लेकिन वहां के जज उन्हें असाइलम का विकल्प देते हैं जिसे वो स्वीकार कर लेते हैं और यूके के निवासी बन जाते हैं. डायरेक्टर राजकुमार हिरानी की इस फिल्म में अवैध प्रवासियों की लाइफ को अच्छे तरीके से दर्शाया गया है.
2. यूनाइटेड कच्छे (2023)

रूसी बैले डांसर क्सेनिया रयाबिनकिना कैसे राज कपूर की क्लासिक फिल्म मेरा नाम जोकर में मरीना बनकर भारत पहुंचीं, इसकी कहानी बेहद दिलचस्प है. मॉस्को से लेकर बॉलीवुड तक का उनका सफर किसी फिल्मी किस्से से कम नहीं. जानिए कैसे उनकी एक लाइव परफॉर्मेंस ने राज कपूर को प्रभावित किया, कैसे उन्हें भारत आने की इजाजत मिली और आज वो कहां हैं और क्या कर रही हैं.

शहनाज गिल ने बताया कि उन्हें बॉलीवुड में अच्छे रोल नहीं मिल रहे थे और उन्हें फिल्मों में सिर्फ प्रॉप की तरह इस्तेमाल किया जा रहा था. इसी वजह से उन्होंने अपनी पहली फिल्म इक कुड़ी खुद प्रोड्यूस की. शहनाज ने कहा कि वो कुछ नया और दमदार काम करना चाहती थीं और पंजाबी इंडस्ट्री में अपनी अलग पहचान बनाना चाहती थीं.

ओटीटी के सुनहरे पोस्टर भले ही ‘नई कहानियों’ का वादा करते हों, पर पर्दे के पीछे तस्वीर अब भी बहुत हद तक पुरानी ही है. प्लेटफ़ॉर्म बदल गए हैं, स्क्रीन मोबाइल हो गई है, लेकिन कहानी की कमान अब भी ज़्यादातर हीरो के हाथ में ही दिखती है. हीरोइन आज भी ज़्यादातर सपोर्टिंग रोल में नज़र आती है, चाहे उसका चेहरा थंबनेल पर हो या नहीं. डेटा भी कुछ ऐसी ही कहानी कहता है.










