
विपक्षी एकजुटता की वो तस्वीर जो अपने पीछे छोड़ गई कई सवाल, जानें अब G-8 का क्या होगा?
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बजट सत्र के आखिरी दिन विपक्षी सांसदों ने अडानी मुद्दे पर नरेंद्र मोदी सरकार को निशाना बनाया और राहुल गांधी को लोकसभा से अयोग्य ठहराए जाने का मुद्दा भी उठाया. इस दौरान विपक्ष के 19 दलों ने एक साथ आकर विजय चौक से नई दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब तक तिरंगा मार्च निकाला. इसमें AAP, BRS और JMM जैसे विपक्षी दल भी शामिल हुए. ऐसे में सवाल है कि उस G-8 विपक्षी फोरम का क्या होगा, जो कि गैर कांग्रेसी नेताओं की बन रही है...?
संसद के बजट सत्र के आखिरी दिन, लगभग 19 विपक्षी दलों के सांसदों ने हाथों में तिरंगा लिए हुए विजय चौक से नई दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब तक फ्लैग मार्च निकाला. इसके बाद सांसदों ने एक साझा एजेंडे पर सरकार पर दवाब बनाने की कोशिश की. विपक्षी सांसदों ने अडानी मुद्दे पर नरेंद्र मोदी सरकार को निशाना बनाया और राहुल गांधी को लोकसभा से अयोग्य ठहराए जाने का मुद्दा भी उठाया. मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष के एकजुट होने की ये तस्वीर काफी दुर्लभ थी.
हालांकि, इस विपक्षी एकजुटता से बड़ा सवाल ये भी उठा कि अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी और केसीआर सहित आठ गैर-बीजेपी, गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों द्वारा शुरू किए गए G-8 फोरम का अब क्या होगा. इस विरोध मार्च में तो साफ देखा गया कि कांग्रेस ही अभी तक संयुक्त विपक्षी मोर्चे के केंद्र में है. जबकि G-8 फोरम में अधिकतर क्षेत्रीय दल हैं. सवाल है कि अगर कांग्रेस के नेतृत्व में यह विपक्षी मोर्चा काम कर गया तो क्या G-8 अपनी प्रासंगिकता खो देगा?
संयुक्त विपक्ष या G-8, आगे का रास्ता क्या है?
कांग्रेस इसे विपक्षी एकजुटता तो बता रही है लेकिन क्या बाकी अन्य दल भी कांग्रेस के साथ आएंगे? कांग्रेस अध्यक्ष मलिकर्जुन खड़गे का तो कहना यह है कि विपक्षी दल भाजपा के खिलाफ लड़ने के लिए एक साथ आना जारी रखेंगे. खड़गे ने पीएम मोदी के उस दावे का भी खंडन किया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) 2024 का लोकसभा चुनाव जीतेगी.
लेकिन वहीं आम आदमी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने इंडिया टुडे को बताया, 'संयुक्त विपक्ष (19 दलों का) अडानी समूह के मुख्य मुद्दे तक ही सीमित है.' यह कांग्रेस पार्टी द्वारा पेश की जा रही तस्वीर के बिल्कुल विपरीत है.
इस विपक्षी एकजुटता के भी नेतृत्व की अगर बात की जाए तो गैर-यूपीए विपक्षी दल भी इससे ज्यादा प्रभावित नजर नहीं आए. चाहे वह बीआरएस के के. केशव राव हों या आम आदमी पार्टी (आप) के संजय सिंह, उन्होंने सुनिश्चित किया कि एकजुट विपक्षी मंच में उनकी मौजूदगी 2024 के मुद्दे को लेकर नहीं है. हां, वे 2024 में भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ने को तैयार तो हैं लेकिन इसका ये मतलब ना निकाला जाए कि वो इस मुद्दे पर कांग्रेस के साथ खड़े हैं.

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