
लापरवाही से मौत पर सजा 7 साल हो...नए प्रावधानों पर संसदीय समिति में जोरदार बहस
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संसदीय समिति का मानना है कि प्रस्तावित नये आपराधिक कानून में, लापरवाही से मौत के लिए सात साल जेल की सजा का प्रावधान ”अत्यधिक” है. समिति ने सुझाव दिया है कि इस सजा को घटाकर पांच साल कर देना चाहिए.
संसद की एक समिति ने कहा है कि प्रस्तावित नये आपराधिक कानून में, लापरवाही से मौत के लिए सात साल जेल की सजा का प्रावधान 'अत्यधिक' है और इसे घटाकर पांच साल किया जाना चाहिए. भारतीय जनता पार्टी के सांसद बृजलाल की अध्यक्षता वाली गृह मामलों से संबंधित संसद की स्थायी समिति ने यह भी कहा कि भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में उन लोगों के लिए 10 साल जेल की सजा का सुझाव दिया गया है जो जल्दबाजी या लापरवाही से किसी व्यक्ति की मौत का कारण बनते हैं और घटनास्थल से भाग जाते हैं, या घटना की सूचना पुलिस या मजिस्ट्रेट को देने में विफल रहते हैं.
सजा को सात से घटाकर पांच साल किया जाए
पैनल ने अपने नोट में कहा,'समिति का मानना है कि धारा 104(1) के तहत दी जाने वाली सजा आईपीसी की धारा 304ए के तहत समान अपराध के प्रावधान की तुलना में अधिक है इसलिए, समिति सिफारिश करती है कि धारा 104(1) के तहत प्रस्तावित सजा को सात साल से घटाकर पांच साल तक किया जा सकता है. बीएनएस की धारा 104 (1) के अनुसार, जो कोई भी लापरवाही से किए गए कृत्य से किसी व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनता है, जो गैर इरादतन हत्या की श्रेणी में नहीं आता हो, तो उसे सात साल तक की जेल की सजा दी जाएगी और उस पर जुर्माना भी लगाया जाएगा.
इसी अपराध के लिए भारतीय दंड संहिता (304ए) के तहत प्रावधान है कि जो कोई भी जल्दबाजी या लापरवाही से कोई ऐसा कृत्य करके किसी व्यक्ति की मौत का कारण बनता है, जो गैर इरादतन हत्या की श्रेणी में आता है, तो उसे उसे दो साल तक की कैद, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जाएगा. प्रस्तावित कानून भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस-2023), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस-2023) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए-2023) हैं.
बीते 11 अगस्त को लोकसभा में पेश किए गए ये तीन विधेयक भारतीय दंड संहिता, 1860, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की जगह लेंगे. समिति की रिपोर्ट शुक्रवार को राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को सौंपी गई.
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