राजू ठेठ बनाम आनंदपाल और फिर विश्नोई गैंग... 18 साल की दुश्मनी और 4 गैंगस्टर्स के इंतकाम की कहानी
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सरेआम गैंगस्टर राजू ठेठ का कत्ल कर दिया गया. और इस मर्डर के पीछे नाम आया उस कुख्यात गैंग का जो सिद्धू मूसेवाला की हत्या के बाद से ही लगातार चर्चाओं में बना हुआ है. जी हां हम बात कर रहे हैं लॉरेंस बिश्नोई गैंग की. राजस्थान के इस गैंगवॉर की कहानी कोई नई नहीं है बल्कि 18 साल से दुश्मनी और इंतकाम का सिलसिला जारी है.
राजस्थान का शेखावटी इलाका कई बार खूनी वारदातों का गवाह बन चुका है. हाल ही में ये इलाका उस वक्त फिर सुर्खियों में आ गया, जब गैंगस्टर राजू ठेठ को दिन दहाड़े चार बदमाशों ने गोली मारकर मौत की नींद सुला दिया. अभी तक जुर्म और गैंगवार की ये कहानी चार किरदारों के साथ चली आ रही थी. लेकिन राजू की हत्या के बाद इस खूनी खेल में एक नए और कुख्यात गैंगस्टर का नाम और शामिल हो गया. इस पूरी कहानी को समझने के लिए हमें इस दुश्मनी के अतीत में झांकना होगा. आइए सिलसिलेवार जानते हैं इस खूनी खेल की इनसाइड स्टोरी.
बीते शनिवार की सुबह सरेआम गैंगस्टर राजू ठेठ का कत्ल किया गया. और इस मर्डर के पीछे नाम आया उस कुख्यात गैंग का जो सिद्धू मूसेवाला की हत्या के बाद से ही लगातार चर्चाओं में बना हुआ है. जी हां हम बात कर रहे हैं लॉरेंस बिश्नोई गैंग की. राजू ठेठ की हत्या की जिम्मेदारी सोशल मीडिया पर इसी गैंग के गुर्गे रोहित गोदारा ने ली.
मरने वाला गैंगस्टर राजू ठेठ कोई आम अपराधी नहीं था, जुर्म की दुनिया में उसका नाम जितना पुराना था, उतना ही बड़ा भी. राजू ठेठ का दबदबा इस कदर था कि जब वो अपने हथियारबंद साथियों के साथ सड़क पर निकलता था, तो लोग उसके सामने आने से भी बचते थे. वो राजू ठेठ ही था, जिसके जेल जाने के बाद भी उसके नाम पर सूबे में लगातार रंगदारी वसूली गई. कई संगीन अपराध किए गए.
साल 1995 गैंगस्टर राजू ठेठ का अपराध से पुराना नाता था. जिसे जानने और समझने के लिए हमें 27 साल पीछे जाना होगा. राज्य के सीकर जिले में एसके कॉलेज 90 के दशक में शेखावटी की राजनीति का केंद्र था. उसी कॉलेज में भाजपा के छात्र संगठन एबीवीपी के कार्यकर्ता गोपाल फोगावट का दबदबा था. गोपाल शराब के धंधे से जुड़ा हुआ था. उसके पास पैसे की कमी नहीं थी. राजू ठेठ भी उसी कॉलेज में था. वो गोपाल का जलवा देखकर उसके साथ काम करने लगा. उसने गोपाल को अपना गुरु मान लिया था.
बलबीर बानूड़ा से राजू की दोस्ती कुछ दिनों में ही राजू ने गोपाल का भरोसा जीत लिया और उसके देखरेख में ही शराब का धंधा करने लगा. इसी दौरान राजू ठेठ की मुलाकात बलबीर बानूड़ा नाम के एक कारोबारी से हुई. बानूड़ा दूध का व्यापार करता था. लेकिन राजू ठेठ ने उसे शराब के धंधे का चस्का लगा दिया. इसके बाद बानूड़ा को पैसे की ऐसी लत लगी कि वह पूरी तरह से इसी धंधे में जुट गया.
साल 1998. अब गोपाल का हाथ राजू के सिर पर था. लिहाजा, वो अपने साथी बलबीर बानूड़ा के साथ मिलकर शराब के धंधे में मोटा मुनाफा कमा रहे थे. उनकी दौलत में इजाफा होता जा रहा था. इसी दौरान बलबीर और राजू ठेठ ने उनके खिलाफ धंधा करने वाले भेभाराम को सीकर में मौत के घाट उतार दिया. नतीजा ये हुआ कि अब भेभाराम के गैंग से इन दोनों की दुश्मनी हो गई. यहीं से शेखावटी में गैंगवार का खेल शुरू हुआ.
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