योगी 2.0: अब दिखने लगे हैं भविष्य की राजनीति के कई अहम संकेत
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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दूसरा कार्यकाल शुरू हो चुका है. लेकिन अपने पहले कार्यकाल और उससे भी पहले की छवि से निकलकर योगी अब एक ज़्यादा वृहद् दायरे की राजनीति को साधते और बढ़ते प्रशासक के तौर पर नज़र आ रहे हैं.
संस्कृत का एक सूत्र है- योगक्षेम. योगक्षेम का अर्थ कई प्रकार से देखा-गढ़ा जाता है. पर मूल भाव है कुछ हासिल करना और जो हासिल है उसे संभालना, उसकी रक्षा करना. योगक्षेम का यह सूत्र उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के वर्तमान अवतार को अभिव्यक्त करता नज़र आ रहा है.
इस वर्ष जब उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार लौटी तो सूबे के नेतृत्व का दायित्व फिर से योगी आदित्यनाथ के हाथों में सौंपा गया. इसकी वजह यह भी रही कि योगी से बड़े क़द का कोई और चेहरा भाजपा के पास सूबे में था नहीं. दूसरा, जीत का सेहरा केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सिर नहीं बंधा है, इसमें योगी आदित्यनाथ की भी एक महत्वपूर्ण भूमिका है.
जानकार मानते हैं कि दोबारा सरकारें न दोहराने वाले सूबे में साढ़े तीन दशकों के बाद अगर कोई सरकार सत्ता में लौटी है तो उसके पीछे एक मज़बूत छवि भी बड़ा कारण है. भाजपा को यूपी में दोहरा लाभ हुआ. प्रधानमंत्री मोदी के सामाजिक कल्याण की योजनाओं का लाभ उनके लिए एक नया, बड़ा और निर्णायक मतदाता वर्ग विकसित करता आया है. इस मतदाता वर्ग की पहचान किसी जाति या विचारधारा से नहीं की जा सकती. दिल्ली, ओडिशा और बिहार में ऐसा ही प्रयोग अरविंद केजरीवाल, नवीन पटनायक और नीतीश कुमार चरितार्थ कर पाने में सक्षम रहे और उन्हें इसका लाभ भी मिला.
लेकिन अखिलेश यादव की चुनाव के वक़्त की घोषणाएं भाजपा की घोषणाओं की तुलना में हल्की नहीं थी. यहां भाजपा को एक अहम लाभ मिला और वो था योगी की अपनी व्यक्तिगत छवि. मैनपुरी का रहने वाला एक मुस्लिम दर्ज़ी अगर यह कहता है कि पहले मैं शाम सात बजे दुकान बंद कर देता था लेकिन पिछले पांच साल के दौरान मैं 9 बजे के बाद तक दुकान खुली रख सका हूं, एक अहम पहलू है जो योगी की छवि के प्रति लोगों के आकर्षण को दिखाती है.
योगी निर्णायक और अनुशासित प्रशासक के तौर पर उभरे. उन्होंने सत्ता के मोदी मॉडल को अपनाया और प्रशासन की बागडोर के साथ-साथ सत्ता को केंद्रीकृत करके रखा. इससे कुछ मंत्रियों और विधायकों को तो नुक़सान हुआ लेकिन स्पष्ट जनादेश की सरकार को वो नुक़सान नहीं हुआ जो योगी से पहले अखिलेश की सरकार को हुआ था. अखिलेश एक बेहतर प्रशासक होकर भी पांच मुख्यमंत्रियों वाली छवि और निर्णय में असमंजस वाले शाप से मुक्त नहीं हो सके थे.
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में मतदाताओं को मोदी और योगी का यह कॉकटेल भा गया. चुनाव से ठीक पहले आई मोदी और योगी की तस्वीर को भले ही उस वक़्त कई राजनीतिक स्कैनरों से गुज़ारा गया, लेकिन उस फ़ोटो का लोगों के बीच प्रभाव राजनीतिक व्याख्याओं से इतर पड़ा. यही कारण है कि आख़िर तक असमंजस ओढ़े रहे आकलनों में अंततः जीत इस जोड़ी को मिली.
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