
ये राइन की मौत है! एक रात में ही लाल हो गया नदी का पानी, मर गईं मछलियां... फिर आया टर्निंग पॉइंट
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औद्योगीकरण-मशीनीकरण के भार से हांफ रही राइन नदी 1970 के मध्य तक एक नाले में तब्दील हो चुकी थी. वैसी ही नदी जैसा आजकल दिल्ली में अपनी यमुना का स्वरूप है. 1 नवंबर, 1986 की रात को एक ऐसी घटना हुई जिसने राइन की कहानी को हमेशा के लिए बदल दिया. अगली सुबह नदी का पानी लाल था. मछलियां मर चुकी थीं.
नदियों के साथ कवियों और लेखकों और दार्शनिकों का रोमांस सदियों से चला आ रहा है. फ्रेंच लेखक विक्टर ह्यूगो कहते हैं, "मुझे नदियां बहुत प्रिय हैं, जो विचारों के साथ-साथ सामान भी ले जाती हैं, सभी नदियों में से मुझे राइन सबसे अधिक प्रिय है." विक्टर ह्यूगो ने 1839 में ये बात कही थी. लेकिन अगर 130 साल बाद 1970 के दशक में विक्टर ह्यूगो इस नदी को निहारने आते तो उन्हें बेहद निराशा होती.
औद्योगीकरण के भार से हांफ रही राइन नदी 1970 के मध्य तक एक नाले में तब्दील हो चुकी थी. वैसी ही नदी जैसा आजकल दिल्ली में अपनी यमुना का स्वरूप है. तब राइन नदी का प्रदूषण अपने चरम पर पहुंच गया था.
तब इसमें प्रतिवर्ष न केवल फास्फोरस और अमोनियम जैसे जहरीले तत्व इस नदी में बह रहे थे बल्कि कैडमियम, पारा, लोहा, डाइऑक्सिन, डीडीटी और क्लोरोफॉर्म जैसे विषैले पदार्थ भी इसके पानी में शामिल थे. यूरोप के नौ देशों से होकर गुजरने वाली ये नदी सचमुच में सीवर में बदल चुकी थी.
राइन: एक नदी की बदहाली
खड़ी पहाड़ियों पर अंगूर के बाग, मध्यकालीन वैभव के महल, विशाल उपजाऊ मैदान, डेल्टा और दलदल. स्विट्जरलैंड के आल्प्स पर्वत श्रृंखला से निकलने वाली राइन नदी के अलग अलग चेहरे रहे हैं. स्विस आल्प्स के हिमनद क्षेत्रों से निकलकर अपनी 1,320 किलोमीटर की यात्रा में यह नदी पहाड़ों से उत्तरी सागर तक बहती है और स्विटजरलैंड, फ्रांस, लक्जमबर्ग, जर्मनी और नीदरलैंड के कुछ सबसे घनी आबादी वाले और औद्योगिक क्षेत्रों को पार करती है.
यमुना नदीं की लंबाई भी 1376 किलोमीटर है और ये नदी भी पहाड़ों से उतरकर घनी बस्तियों, औद्योगिक क्षेत्रों को पारकर संगम में गंगा में मिलती है.

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