
मौत के करीब होने पर खुशी क्यों महसूस करते हैं कुछ लोग? रिसर्च में आया सामने
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साइमन बोआस, जो कैंसर से जूझते हुए जिंदगी के अंतिम पड़ाव पर थे, का 15 जुलाई को 47 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. बीबीसी इंटरव्यू में उन्होंने कहा, -मेरा दर्द नियंत्रित है और मैं बेहद खुश हूं. यह सुनने में अजीब लगता है, लेकिन मैं अपनी जिंदगी में पहले से कहीं ज्यादा खुश हूं.
आपको आनंद फिल्म का राजेश खन्ना का किरदार याद है. कैंसर से जूझते हुए भी उन्होंने जिंदगी को पूरी हिम्मत और मुस्कान के साथ जिया, जो देखने वालों को अजीब लग सकता है. कुछ लोग सोचते होंगे कि कोई कैसे इस मुश्किल घड़ी में खुश रह सकता है, या यह महज फिल्मी कहानी है. लेकिन असल जिंदगी भी कुछ हद तक इसी सच्चाई के करीब होती है, जहां मुश्किलों के बीच भी उम्मीद और सकारात्मकता की जगह होती है.
साइमन बोआस, जो कैंसर से जूझते हुए जिंदगी के अंतिम पड़ाव पर थे, का 15 जुलाई को 47 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. बीबीसी इंटरव्यू में उन्होंने कहा, -मेरा दर्द नियंत्रित है और मैं बेहद खुश हूं. यह सुनने में अजीब लगता है, लेकिन मैं अपनी जिंदगी में पहले से कहीं ज्यादा खुश हूं.
यह सुनना अजीब लग सकता है कि कोई शख्स मौत के करीब होते हुए भी खुश हो सकता है, लेकिन एक क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट के रूप में मैंने पाया है कि यह अनोखा नहीं है. रिसर्च के मुताबिक, मौत के डर से लड़ने में लोग अपने अंतिम समय में सकारात्मक भाषा का इस्तेमाल करते हैं. मौत के करीब पहुंचने पर जीवन को लेकर एक नई समझ विकसित होती है, और लोग जीवन के हर पल को महत्व देना शुरू कर देते हैं.
मौत से पहले जीवन का अर्थ समझना
साइमन बोआस ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि उन्होंने अपनी स्थिति को स्वीकार किया और जीवन की छोटी-छोटी खुशियों पर ध्यान केंद्रित किया. रोम के दार्शनिक सेनेका के शब्दों को दोहराते हुए उन्होंने कहा-जीवन कितना लंबा है, यह हमारी सोच पर निर्भर करता है, न कि सालों पर. मनोवैज्ञानिक विक्टर फ्रैंकल ने भी अपने अनुभवों से यह सिद्ध किया कि जीवन में किसी भी परिस्थिति में अर्थ ढूंढना जरूरी है.
सामाजिक रिश्तों और साधारण खुशियों की अहमियत

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