महिला आरक्षण बिल की राह में अभी कई रोड़े, शर्तों के साथ समर्थन देकर विपक्ष उठा रहा ये 5 सवाल
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महिला आरक्षण बिल लोकसभा में पेश करते हुए आज प्रधानमंत्री ने बिल का नाम नारी शक्ति वंदन अधिनियम बताया. इस बिल की खासियत यह है कि इसके समर्थन में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल हैं. इस बिल के पास होने में तो कोई दिक्कत नजर नहीं आ रही, लेकिन लागू होने में कई रोड़े हैं.
आज भारत की नई संसद में कार्यवाही शुरू हो गई. नई संसद में लोकसभा की कार्यवाही के पहले ही दिन सरकार ने उस बिल को पेश कर दिया जो पिछले 27 साल से संसद के दोनों सदनों से पास होकर कानून नहीं बन सका था. ये महिला आरक्षण बिल है, जिसे लोकसभा में पेश करते हुए आज प्रधानमंत्री ने बिल का नाम नारी शक्ति वंदन अधिनियम बताया. इस बिल की खासियत यह है कि इसके समर्थन में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल हैं.
इस बिल को विस्तार से समझने से पहले एक नजर इस बिल की टाइमलाइन पर डाल लेते हैं. साल 1996, देवेगौड़ा सरकार के दौरान पहली बार देश में महिला आरक्षण बिल संसद में पहुंचा. लेकिन पास नहीं हो पाया. इसके बाद साल 1997 में इंद्र कुमार गुजराल की सरकार ने भी कोशिश की. लेकिन महिला आरक्षण बिल पर कामयाबी नहीं मिली. फिर 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार आई. महिला आरक्षण बिल फिर संसद की दहलीज तक पहुंचा. लेकिन पास नहीं हो पाया.
हर बार अटकता रहा बिल
इसके बाद 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी फिर से प्रधानमंत्री बने. फिर सदन में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण संसद में देने वाला बिल आता है. लेकिन पास नहीं हो सका. फिर आया साल 2010, जब मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान 2008 से चलती कोशिश में दो साल बाद राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल पास तो हुआ. लेकिन लोकसभा तक फिर पहुंचा ही नहीं. फिर 19 सितंबर 2023 को 27 साल बाद नरेंद्र मोदी सरकार की नई कोशिश क्या इतिहास बना पाएगी?
बता दें कि आज नई संसद के भीतर पहुंचकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि पवित्र काम के लिए ईश्वर ने मुझे चुना है. मोदी बोले, 'महिलाओं को अधिकार देने का, महिलाओं की शक्ति का उपयोग करने का वो काम, शायद ईश्वर ने ऐसे कई पवित्र काम के लिए मुझे चुना है. एक बार फिर हमारी सरकार ने इस दिशा में कदम बढ़ाया है.'
महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना है मकसद?
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