
ब्लैक एंड वाइट दौर से ही फिल्मों में रंग भर रहे डांस नंबर, कुकू से लेकर उर्वशी रौतेला तक को बनाया स्टार
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एक तरफ जहां एक टिपिकल हिंदी मसाला एंटरटेनर, डांस नंबर के बिना पूरी नहीं होती. वहीं, इन गानों के सेक्सुअल इमेज गढ़ने वाले लिरिक्स और इन लिरिक्स का मतलब पूरा करते भड़काऊ डांस स्टेप्स की आलोचना भी खूब होती है. क्या आपने सोचा है कि ये गाने फिल्मों में आए कब? चलिए बताते हैं...
सनी देओल की फिल्म 'जाट' का ट्रेलर आने के बाद से ही जनता में इस फिल्म के लिए अच्छी-खासी एक्साइटमेंट है. अब फिल्म का पहला गाना आ गया है जिसका नाम है 'टच किया'. ये उर्वशी रौतेला का डांस नंबर है, जो असल में फिल्म की कास्ट का हिस्सा नहीं हैं. वो 'जाट' में सिर्फ ये डांस नंबर कर रही हैं. हाल ही में तेलुगू फिल्म 'डाकू महाराज' में भी उर्वशी ने 'दाबिदी दाबिदी' का एक डांस नंबर किया था, जिसमें उनके डांस स्टेप की काफी आलोचना हुई थी.
एक तरफ जहां एक टिपिकल हिंदी मसाला एंटरटेनर, डांस नंबर के बिना पूरी नहीं होती. वहीं, इन गानों के सेक्सुअल इमेज गढ़ने वाले लिरिक्स और इन लिरिक्स का मतलब पूरा करते भड़काऊ डांस स्टेप्स की आलोचना भी खूब होती है. आज से कुछ ही साल पहले इस तरह के गानों को 'आइटम नंबर' भी कहा जाता था. लेकिन नैतिकताओं को निरंतर नई दिशा देते समाज में काफी बहस होने के बाद तय किया गया कि ये 'आइटम' शब्द सही नहीं है और महिलाओं को ऑब्जेक्टिफाई करने वाला है. तबसे इन गानों को 'डांस नंबर' कहा जाने लगा.
हालांकि, इससे इन गानों की तासीर पर कोई असर नहीं पड़ा और ये अब भी फिल्मों में होते ही हैं. 'आइटम नंबर' या 'डांस नंबर' की बहस से इतर, क्या आपने सोचा है कि ये गाने फिल्मों में आए कब? चलिए बताते हैं...
होते क्या हैं ये 'डांस नंबर'? 'आइटम नंबर' असल में उस तरह के गानों को कहा गया जिनका फिल्म की कहानी से बहुत लेना देना नहीं था. कहानी के ड्रामा, गंभीरता और डेवलपमेंट के बीच इस गाने के तौर पर मेकर्स ने दर्शकों को एक लाइट मोमेंट देना शुरू किया. स्क्रीन पर एक गाना हो जिसमें एक डांसर हो, जो दर्शकों को अपनी अदाओं से एंटरटेन करे. ऐसे गाने के लिरिक्स रोमांच पैदा करने वाले हों, डांसर के कपड़े अपने दौर के हिसाब से एक्स्ट्रा फैशनेबल हों और थिएटर में बैठे दर्शकों (अधिकतर पुरुष) का ध्यान बांध ले.
तब फिल्मों में डांस का भी एक तयशुदा स्टाइल होता था. ऐसे में फ्रीस्टाइल डांस, खासकर जब कोई महिला परफॉर्म कर रही हो एक बेफिक्री का सिंबल बना, जो उस दौर के हिसाब से काफी 'सेक्सी' माना गया. जनता का ध्यान बांधने वाली इस अलग प्रेजेंटेशन को ही 'आइटम नंबर' कहा गया. यानी फिल्म में ये हिस्सा दर्शकों को आकर्षित करने वाला 'आइटम' है. धीरे-धीरे ये फिल्म की मार्केटिंग का भी हिस्सा बनने लगे.
फिल्मों का डेवलपमेंट समझने पर लगता है कि इसी 'आइटम' में परफॉर्म करने वाली डांसर को दर्शकों ने 'आइटम गर्ल' कहना शुरू किया और इसके साथ एक खास तरह की इमेज भी जुड़ गई. फिल्म इंडस्ट्री की जमीन बॉम्बे (अब मुंबई) की भाषा में शायद यहीं से 'आइटम' शब्द को एक सेक्सुअल रंग मिला, जिससे पीछा छुड़ाने के लिए ही बाद में 'आइटम नंबर' को 'डांस नंबर' बोलने की कवायद शुरू हुई.

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