
बाहुबली का 'हाता', पूर्वांचल की पॉलिटिक्स और कास्ट-क्राइम का कॉकटेल... ऐसे दशकों तक हरिशंकर तिवारी ने किया था राज
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उत्तर प्रदेश सरकार में पूर्व मंत्री हरिशंकर तिवारी का मंगलवार शाम निधन हो गया. उन्होंने 86 वर्ष की उम्र में गोरखपुर स्थित आवास पर अंतिम सांस ली. हरिशंकर तिवारी कल्याण सिंह, मायावती और मुलायम सरकार तक में मंत्री रहे. उन्होंने किसी दल से कभी परहेज नहीं किया. वह अलग-अलग दलों से 6 बार विधायक चुने गए. हरिशंकर तिवारी के बड़े बेटे कुशल तिवारी दो बार संत कबीर नगर से सांसद रहे हैं तो छोटे बेटे विनय शंकर तिवारी चिल्लूपार विधानसभा से बीएसपी विधायक रहे.
वो चलते, उठते-बैठते चौकन्ना रहते. किसी को देखते तो अंदर तक थाह ले लेते. किसी को घूरते तो कंपा देने की क्षमता रखते. बात तो सौम्यता से करते लेकिन उसमें वजन होता. बातचीत में भी भी चित करने वाली चाल चलते. मुद्दों को बहुत देर तक नहीं खींचते, समाधान का फरमान जारी करते. कपड़े साफ और कलफदार पहनते. जवानी के दिनों में जब निकलते तो बहुत कम लोगों को पता होता कि जाना कहां है. काफिला कितना भी लंबा हो लेकिन आसपास केवल विश्वसनीय लोग ही पहुंच पाते. बात हो रही है हरिशंकर तिवारी की जिनका लंबी बीमारी के बाद मंगलवार को गोरखपुर में निधन हो गया.
हरिशंकर तिवारी छोटे कद के थे लेकिन निगाहें पैनी थीं. बड़े कद वालों को बैठाकर बात करते. स्वभाव में ब्राह्मणों की लचक थी लेकिन अंदर से अक्खड़ थे. जो ठान लेते वह करके मानते. उन्हें ठहाके लगाकर हंसते शायद ही किसी ने देखा हो, वह हल्के से मुस्कुराते, चश्मे को नीचे करके झांकती हुई आंखें पुरानी हिंदी फिल्मों में मुनीम की याद दिलातीं.
गोरखपुर विश्वविद्यालय से राजनीति शुरू करने वाले हरिशंकर तिवारी ने पूर्वांचल के माथे पर लकीर खींच दी. उनसे पहले क्राइम कुंडली वाले लोग नेताओं के इशारे पर काम करते थे. लेकिन हरिशंकर तिवारी ने सबसे पहले यह बात समझी कि अगर राज करना है तो खुद राजनीति में उतरना होगा. अगर हम जिताने का दम रखते हैं तो जीत क्यों नहीं सकते. हां इसके लिए कुछ नियम कायदे बनाने होंगे और उनका कायदे से पालन करना होगा.
हरिशंकर तिवारी ने तय कर रखा था कि आम पब्लिक को कभी परेशान नहीं करना है. गरीबों और मजलूमों के साथ खड़े होना है. लड़ना उससे है जिसकी तूती बोलती हो, उसको ऐसे पटखनी देनी है कि बड़ा संदेश जाए और छोटे-मोटे लोग अपने आप शरणागत हो जाएं. जो शरण में आ जाए हर हाल में उसकी रक्षा करनी है, चाहे उसने कुछ भी किया हो. प्रशासन से सीधे पंगा नहीं लेना है. काम कुछ इस तरह से करना है कि प्रशासन नाराज न हो साथ दे. गांव की राजनीति से लेकर स्कूल कॉलेज तक अपने गुट तैयार करने हैं ताकि लोगों की जुबान पर नाम आता रहे. ऐसे लोगों की फौज तैयार करनी है जो एक इशारे पर मरने मारने पर उतारू हों.
कुछ इस तरह के फॉर्मूले हरिशंकर तिवारी ने जवानी में ही समझ लिए थे. गोरखपुर जिले की विधानसभा सीट है चिल्लूपार, यहीं के एक गांव टांडा में हरिशंकर तिवारी का जन्म हुआ था. हरिशंकर तिवारी पढ़ाई करने गोरखपुर पहुंचे थे. गुरु गोरखनाथ की धरती गोरखपुर में तब मठ का सिक्का चलता था. गोरक्षनाथ पीठ को कोई चुनौती देने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था. दिग्विजय नाथ से लेकर महंत अवैद्यनाथ के जमाने तक दरबार लगते रहे और फरमान जारी होते रहे. प्रशासन की हिम्मत नहीं होती थी कि उसे नकार सके. संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षा पास करके आए कुछ नौकरशाहों को यह बात खलती थी. लेकिन बस नहीं चलता था. राज्य में कांग्रेस की सरकार होती. महंत ठाकुर होते और आरएसएस में उनका दबदबा होता. दबदबा ऐसा था कि मठ के आगे सीएम की भी नहीं चलती.
दूसरी ओर गोरखपुर विश्वविद्यालय की अपनी गरिमा थी. पूर्वांचल के कोने-कोने से लोग यहां पढ़ने आते. और इस छात्रसंघ पर ठाकुरों का कब्जा था. ब्राह्मण पढ़ने में तेज थे लेकिन ठाकुरों का वर्चस्व उन्हें खलता था. मठ और विश्वविद्यालय मिलकर गोरखपुर को मुकम्मल बनाते थे. गोरखपुर जंक्शन भी अपने आप में बड़ा नाम था.

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