बगावत का 'बिहार मॉडल', जिसने उद्धव ठाकरे और शरद पवार की जमीन छीन ली
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महाराष्ट्र में एनसीपी टूट के मुहाने पर खड़ी है. नाम और निशान की लड़ाई चुनाव आयोग की चौखट पर पहुंच चुकी है. बगावत के 'बिहार मॉडल' ने उद्धव ठाकरे की सियासी जमीन छी ली थी और अब अजित पवार भी इसी मॉडल का इस्तेमाल कर रहे हैं. बगावत का ये बिहार मॉडल क्या है?
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में घमासान मचा है. अजित पवार के नेतृत्व में एनसीपी के कुल नौ विधायकों ने एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री पद की शपथ ले ली. अजित पवार ने शपथग्रहण के बाद ये साफ कहा, ''हम एनसीपी के रूप में ही सरकार में शामिल हुए हैं, किसी गुट के रूप में नहीं. हम आने वाला हर चुनाव एनसीपी के नाम और निशान पर ही लड़ेंगे.'' अजित के बाद एनसीपी के संस्थापक शरद पवार मीडिया के सामने आए और विधायकों के सरकार में शामिल होने के कदम को पार्टी लाइन के खिलाफ बताया. उन्होंने कहा कि ये बगावत है और ऐसा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.
एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने सरकार में शामिल होने के कदम को बगावत बताया तो वहीं अजित ने इसे पार्टी का स्टैंड. रिश्ते में चाचा-भतीजा दोनों नेताओं के बयान से ही संकेत मिल गए थे कि एनसीपी भी अब उसी तरह के सियासी बवंडर में फंस गई है जिस तरह पिछले साल शिवसेना. 2 से 6 जुलाई तक, पिछले पांच दिन का घटनाक्रम भी यही बता रहा है. एनसीपी पर कब्जे की जंग अब चुनाव आयोग की चौखट पर पहुंच चुकी है. अजित पवार ने चाचा पवार को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाकर एनसीपी की कमान खुद ले ली है.
सियासत का हर चक्रव्यूह भेदने में माहिर माने जाने वाले शरद पवार भतीजे अजित के सियासी व्यूह में फंस गए हैं. सियासी बिसात पर अपनी चाल से माहिर नेताओं को भी चौंका देने वाले पवार अपनों की चाल को कैसे बेअसर करें? रास्ता निकालने के लिए बैठक पर बैठक कर रहे हैं. उन्होंने अब खुद भी ये स्वीकार कर लिया है कि एनसीपी में वैसी ही परिस्थितियां बन गई हैं, जैसी पिछले साल शिवसेना में. शिवसेना में पिछले साल उद्धव ठाकरे के खिलाफ एकनाथ शिंदे ने बगावत कर दी थी. शिंदे की बगावत के बाद उद्धव को पहले सत्ता और फिर पार्टी के नाम-निशान से भी हाथ धोना पड़ा था.
शरद पवार के सामने अब अपनी ही बनाई पार्टी का नाम और निशान बचाए रखने की चुनौती आ खड़ी हुई है. सियासत और बगावत का इतिहास पुराना है लेकिन बगावत का ये कैसा स्वरूप है, जिसमें बगावत करने वाले ही पार्टी पर भी कब्जा जमा ले रहे? बगावत के साथ ही लड़ाई पार्टी के नाम और निशान पर आ जा रही? पहले शिवसेना में ऐसा ही हुआ और अब एनसीपी में भी वैसी ही परिस्थितियां बन गई हैं. 2022 और 2023 में बगावत की इन दो घटनाओं की पृष्ठभूमि जानने के लिए एक साल और पीछे जाना होगा.
बिहार से आया बगावत का नया मॉडल
सियासत में बगावत के बाद पार्टी पर दावा करने की परंपरा बिहार से शुरू हुई थी. लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के अध्यक्ष रामविलास पासवान ने 2019 में अपनी राजनीतिक विरासत बेटे चिराग पासवान के हाथों में सौंप दी थी. साल 2019 के नवंबर महीने में एलजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई और इसमें चिराग पासवान को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव पारित हुआ. रामविलास ने पार्टी की कमान अपने बेटे जमुई से सांसद चिराग पासवान को सौंप दी. चिराग पासवान ही एलजेपी संसदीय दल के नेता भी थे.
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