
बंगाल को समझने में अब भी नाकाम बीजेपी..., लोकसभा चुनाव के नतीजों से निकले ये सियासी मायने...
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बीजेपी को पिछली बार के मुकाबले इस बार छह सीटें कम मिली हैं. सूत्रों के मुताबिक, इस बार भारतीय जनता पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन की कई वजहें रहीं. पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के पुराने और जमीनी स्तर से जुड़े नेताओं का मानना है कि इस बार उम्मीदवारों की तालिका की वजह से बहुत सारी सीटें गंवानी पड़ी हैं.
क्या भारतीय जनता पार्टी के नेता पश्चिम बंगाल को समझने में कोई भूल कर रहे हैं? क्या दिल्ली के नेताओं की उत्तर भारतीय मानसिकता बंगाली मानसिकता को सही ढंग से समझ नहीं पा रही है. क्या उम्मीदवारों की तालिका में कहीं कोई गड़बड़ी हुई या संगठन सही तरीके से काम नहीं कर पाया या फिर आपसी गुटबाजी हावी है. फिलहाल, ऐसे ही ढेर सारे सवाल पश्चिम बंगाल की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी को बेचैन कर रहे हैं.
जिस पश्चिम बंगाल से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे ज्यादा सीटें जीतने का दावा किया था, जिस पश्चिम बंगाल से बीजेपी के सभी आला नेताओं ने 25 से ज्यादा सीटें जीतने की हुंकार भरी थी, उस पश्चिम बंगाल में बीजेपी सिर्फ 12 सीटों पर सिमट गई है.
बीजेपी के हारने के पीछे क्या भूल गई?
बीजेपी को पिछली बार के मुकाबले इस बार छह सीटें कम मिली हैं. सूत्रों के मुताबिक, इस बार भारतीय जनता पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन की कई वजहें रहीं. पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के पुराने और जमीनी स्तर से जुड़े नेताओं का मानना है कि इस बार उम्मीदवारों की तालिका की वजह से बहुत सारी सीटें गंवानी पड़ी हैं. खासतौर पर दिलीप घोष जैसे कद्दावर नेता को जीती हुई मिदनापुर सीट से हटाकर बर्धमान दुर्गापुर सीट से खड़ा करना एक बड़ी भूल बताई जा रही है. दिलीप घोष को हटाने से बीजेपी को ना सिर्फ मिदनापुर सीट का नुकसान हुआ, बल्कि आसनसोल और दुर्गापुर बर्धमान सीट पर भी इसका खासा असर पड़ा है. इसके पीछे की वजह बंगाल BJP में आपसी गुटबाजी बताई जा रही है.
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संगठन की बूथ तक पहुंच नहीं?

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