'फर्जी हस्ताक्षर का कोई सवाल ही नहीं', राघव चड्ढा पर लगे आरोपों पर AAP का बयान
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आम आदमी पार्टी ने बयान जारी किया है. इसमें दावा किया गया है कि राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा को अभी तक विशेषाधिकार समिति से ऐसा कोई नोटिस नहीं मिला है. आम आदमी पार्टी का कहना है कि जब भी कोई नोटिस आएगा, उसका प्रभावी और विस्तार पूर्वक जवाब दिया जाएगा.
बीजेपी आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा पर दिल्ली सेवा बिल के लिए प्रस्ताव में फर्जी साइन का आरोप लगा रही है. वहीं आम आदमी पार्टी पूरे मामले को लेकर बीजेपी पर झूठ फैलाने की बात कर रही है. दरअसल, सोमवार को करीब 8 घंटे की चर्चा के बाद राज्यसभा में वोटिंग के बाद बिल पर मुहर लग गई. लेकिन इस बिल के पारित होने के दौरान एक बड़ा बखेड़ा हो गया था. आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा ने बिल को सेलेक्ट कमेटी में भेजे जाने के लिए प्रस्ताव मूव किया, जिसमें कई सांसदों के नाम को लेकर घमासान मच गया. इसमें बीजेपी के सांसद भी शामिल थे.
अब आम आदमी पार्टी ने बयान जारी किया है. इसमें दावा किया गया है कि राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा को अभी तक विशेषाधिकार समिति से ऐसा कोई नोटिस नहीं मिला है. आम आदमी पार्टी का कहना है कि जब भी कोई नोटिस आएगा, उसका प्रभावी और विस्तार पूर्वक जवाब दिया जाएगा. पूरे मामले में आम आदमी पार्टी ने अपने बयान में स्पष्ट किया है कि संसदीय नियमों और प्रक्रिया के अनुसार चयन समिति को सदस्यों के नाम प्रस्तावित करने से पहले किसी भी प्रकार के हस्ताक्षर या लिखित सहमति की आवश्यकता नहीं होती है. चूंकि इसमें न तो किसी हस्ताक्षर की आवश्यकता है और न ही कोई हस्ताक्षर प्रस्तुत किया गया है. इसलिए हस्ताक्षरों की गलत व्याख्या का कोई सवाल ही नहीं बनता है.
'नामों का संदर्भ मात्र एक प्रस्ताव था'
राघव चड्ढा के मामले में आम आदमी पार्टी का कहना है कि यह केवल नामों की स्वीकृति या अस्वीकृति का प्रस्ताव है. चयन समितियां गैर-पक्षपातपूर्ण समितियां हैं, जिनमें सभी प्रमुख दलों के सदस्य शामिल होते हैं. इसलिए बोर्ड से नाम प्रस्तावित किए गए. प्रवर समिति के लिए ‘‘आप’’ सांसद द्वारा दिए गए नामों का संदर्भ मात्र एक प्रस्ताव था, जिसे सदन द्वारा स्वीकार या अस्वीकार किया जाना था. इस मामले में सदन ने संदर्भ को खारिज कर दिया. इसलिए उक्त शिकायतकर्ताओं के नाम शामिल करने का प्रश्न ही नहीं उठता है.
आम आदमी पार्टी का दावा है कि नियम साफ तौर से कहते हैं कि यदि सदस्यों का समिति का हिस्सा बनने का कोई इरादा नहीं है तो उनके नाम वापस लिए जा सकते हैं. सच यह भी है कि इस मामले को विशेषाधिकार समिति द्वारा मामले में जारी किए गए संसदीय बुलेटिन में कहीं भी जाली, जालसाजी, चिह्न या हस्ताक्षर जैसे किसी शब्द का उल्लेख नहीं है.
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