
पाठकों-दर्शकों पर कीमतों का कम बोझ मीडिया के लिए बड़ी समस्याः अरुण पुरी
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अरुण पुरी ने प्रिंट मीडिया का उदाहरण देते हुए 'रद्दी के अर्थशास्त्र' का जिक्र किया. उन्होंने कहा, 'भारत में खबर बेहद सस्ते में उपलब्ध है और ये एक बड़ी समस्या है. एक पाठक को अखबार तो लगभग मुफ्त में ही मिलते हैं, इसे मैं 'रद्दी का अर्थशास्त्र' कहता हूं. एक आम पाठक हफ्ते भर के अखबारों को रद्दी वाले को उस कीमत से ज्यादा में बेच देता है, जितना वह पढ़ने के लिए भुगतान करता है.
प्रिंट और ब्रॉडकास्ट मीडिया के पाठकों-दर्शकों पर कीमतों का बोझ कम रखने के लिए दोनों ही माध्यम विज्ञापन पर निर्भर हैं. इससे मीडिया इंडस्ट्री पर काफी दबाव है. इंडिया टुडे ग्रुप के चेयरमैन और एडिटर-इन-चीफ अरुण पुरी ने शनिवार को मुंबई में सुभाष घोषाल मेमोरियल लेक्चर 2022 को संबोधित करते हुए ये बात कही. इस लेक्चर का आयोजन एडवरटाइजिंग एजेंसीज एसोसिएशन ऑफ इंडिया और सुभाष घोषाल फाउंडेशन ने किया था.
अपने संबोधन में अरुण पुरी ने सबसे पहले प्रिंट मीडिया का उदाहरण देते हुए 'रद्दी के अर्थशास्त्र' का जिक्र किया. उन्होंने समझाते हुए कहा, 'भारत में खबर बेहद सस्ते में उपलब्ध है और ये एक बड़ी समस्या है. एक पाठक को अखबार तो लगभग मुफ्त में ही मिलते हैं, इसे मैं 'रद्दी का अर्थशास्त्र' कहता हूं. एक आम पाठक हफ्ते भर के अखबारों को रद्दी वाले को उस कीमत से ज्यादा में बेच देता है, जितना उसने पढ़ने के लिए भुगतान किया होता है. मैं इसमें ये बात भी जोड़ सकता हूं कि ये इकलौता मीडिया उत्पाद है जिसका उपभोग करना पाठकों ने बंद कर दिया है, लेकिन इसकी आपूर्ति नहीं रुकी है. यानी लोगों ने अखबार पढ़ना बंद कर दिया है, लेकिन अखबार उनके घर अब भी आ रहा हैं क्योंकि ये उनके घर के बजट पर असर नहीं डालता है.'
अरुण पुरी ने कहा, 'यही कारण है कि मीडिया की बड़ी निर्भरता विज्ञापनों पर है. उसे सरकार एवं विज्ञापन देने वाले की इच्छाओं के अनुरूप थोड़ा लचीला रुख रखना पड़ता है.'
इसके बाद ब्रॉडकास्ट मीडिया को लेकर अरुण पुरी ने कहा कि इस माध्यम को लेकर नीति के अभाव ने पूरे उद्योग को 'तितर-बितर' करके रख दिया है.
अरुण पुरी ने कहा, '90 के दशक की शुरुआत में सैटेलाइट टीवी की लॉन्चिंग के बाद हमारे पास एक सुसंगठित केबल डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम बनाने का मौका था. सरकार तब जागी जब कॉलोनियों में अवैध तरीके से एक लाख से ज्यादा केबल ऑपरेटर पहुंच गए. सरकार विदेशों में केबल सिस्टम के काम करने के मॉडल को देख सकती थी, वहां किस तरह से शहरों के लिए सही तरीके से फ्रेंचाइजी दी जाती हैं. तकनीकी मानकों के साथ केबल बिछाई जाती हैं. ये अब जाकर हाल ही में हुआ है जब केबल सिस्टम कॉरपोरेट बना है.' मौजूदा परिस्थिति को लेकर उन्होंने कहा कि अब सरकार ट्राई (TRAI) के माध्यम से ग्राहकों को चैनल उपलब्ध कराने की कीमत का नियमन करती है.
अरुण पुरी ने कहा, 'हमारी सरकार को आज भी लगता है कि जनता को सस्ता केबल कनेक्शन मिलना उसका संवैधानिक अधिकार है. ये सिर्फ लोक लुभावन राजनीति का एक स्वरूप है. इस तरह एक बार फिर, दर्शकों को मीडिया का लाभ सस्ते में मिलता है और मीडिया हाउस की सब्सक्रिप्शन से होने वाली इनकम इंटरनेशनल मानकों की तुलना में काफी कम है. ऐसे में चैनल, खासकर के नए चैनल विज्ञापन पर बहुत निर्भर करते हैं और TRP की दौड़ में लगे रहते हैं.

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