न नंबरगेम पक्ष में, न सियासी रिटायरमेंट की चाह... राष्ट्रपति चुनाव में शरद पवार के पीछे हटने के 5 कारण
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राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं. सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ही राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सियासी जोड़तोड़ में जुट गए हैं. इसी कड़ी में ममता बनर्जी ने विपक्षी दलों की बैठक बुलाई थी, जिसमें शरद पवार को साझा उम्मीदवार बनाने की बात रखी गई. लेकिन, शरद पवार ने विपक्ष की ओर से साझा कैंडिडेट बनने के इनकार कर दिया है, जिसके बाद विपक्ष नए चेहरे की तलाश में जुट गया है.
राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के सामने सबसे बड़ी चुनौती साझा उम्मीदवार उतारने की है. ऐसे में पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के बुलावे पर बुधवार को एनसीपी प्रमुख शरद पवार की अध्यक्षता में कॉन्स्टीट्यूशनल क्लब में विपक्षी दलों की बैठक हुई. राष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्षी दलों ने एक कॉमन कैंडीडेट उतारने पर आपसी सहमति जाहिर की. शरद पवार के नाम पर पूरा विपक्ष एकजुट दिखा और उन्हें राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाने की इच्छा जाहिर की, लेकिन पवार खुद ही तैयार नहीं हैं.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि शरद पवार को मैदान में उतारने पर भी चर्चा हुई, लेकिन वह तैयार नहीं हुए. ममता ने साफ तौर पर कहा कि अगर शरद पवार हां करें तो उन्हें विपक्ष की तरफ से राष्ट्रपति का उम्मीदवार बना दिया जाएगा, क्योंकि विपक्ष उनके नाम पर एकमत है. हालांकि, शरद पवार ने विपक्ष का उम्मीदवार बनने से इनकार कर दिया है, जिसके बाद विपक्ष की मुश्किलें बढ़ गई हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि विपक्ष अगर शरद पवार के नाम पर सहमत है तो वो खुद अपने कदम पीछे क्यों खींच रहे हैं? ये पांच कारण हैं, जिनके चलते शरद पवार विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनने के लिए रजामंद नहीं हैं.
1.राष्ट्रपति के लिए नंबर गेम पक्ष में नहीं है राष्ट्रपति पद के लिए शरद पवार विपक्ष की ओर से साझा उम्मीदवार न बनने की पहली वजह नंबर गेम है. बीजेपी की अगुवाई वाला एनडीए भले ही अपने दम पर राष्ट्रपति चुनाव जीतने की स्थिति में न हो, लेकिन वोटों का अंतर इतना नहीं है कि उसे मात ही मिले. राष्ट्रपति चुनाव में कुल वैल्यू वोट 10,86,431 है और चुनाव जीतने के लिए 5,43,216 वोट चाहिए. एनडीए के पास कुल 5.26 लाख वोट है जबकि पूरे विपक्ष व निर्दलियों को मिलाकर 5.60 लाख वोट हैं. इस तरह से सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच वोटों का बहुत ज्यादा अंतर नहीं है.
विपक्ष भी पूरी तरह से एकजुट नहीं है, जिसके चलते एनडीए मजबूत दिखाई दे रहा है. ऐसे में शरद पवार किसी तरह का कोई जोखिम भरा कदम नहीं उठाना चाहते हैं. इसीलिए राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष की ओर से साझा उम्मीदवार बनने से इनकार कर रहे हैं, क्योंकि खुद उन्होंने कहा था कि कैसे विपक्ष जीत सकता है इसका आंकड़ा बता दीजिए.
2.बीजेडी-वाईएसआर नहीं खोल रहे पत्ते? शरद पवार के राष्ट्रपति चुनाव में न उतरने की एक बड़ी वजह यह भी है कि विपक्ष पूरी तरह से एकजुट नहीं है. ममता बनर्जी की बैठक में पांच दलों के नेता शामिल नहीं हुए हैं, जिनमें टीआरएस, आम आदमी पार्टी, बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस और अकाली दल हैं. इनमें से बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस ऐसे दल हैं जो राष्ट्रपति चुनाव को लेकर अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं. बिना इन दोनों दलों के साथ आए विपक्ष का राष्ट्रपति चुनाव जीतना नामुमकिन है. इनमें एक भी दल के साथ ना आने की सूरत में वोट बंट जाएंगे और विपक्ष के उम्मीदवार की स्थिति कमजोर हो जाएगी.
बीजेडी और वाईएसआर कई मौके पर बीजेपी के साथ खड़े रहे हैं और 2017 के राष्ट्रपति चुनाव में भी एनडीए का साथ दिया था. हाल ही में दोनों पार्टी के प्रमुखों ने पीएम मोदी के साथ मुलाकात की थी, जिसे राष्ट्रपति चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है. ऐसे में शरद पवार बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस को बिना साथ लिए चुनाव में उतारने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं.
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