दिल्ली पुलिस की वो 5 बड़ी गलतियां, जिससे बरी हो गए छावला गैंगरेप के दोषी, अब कैसे मिलेगा इंसाफ?
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निर्भया कांड से कोई 10 महीने पहले 9 फरवरी 2012 को दिल्ली में ही एक और लड़की के साथ ठीक वैसी ही दरिंदगी हुई थी, जिसमें तीन लड़कों ने चलती कार में ना सिर्फ एक लड़की के साथ रेप किया था, बल्कि हैवानियत की सारी हदों से आगे निकल कर उसे बेरहमी के साथ कत्ल कर दिया था.
दो अदालतों ने उन तीनों को फांसी की सजा सुनाई थी. पहले निचली अदालत ने और फिर दिल्ली हाई कोर्ट ने. इसके बाद मामला देश की सबसे बड़ी अदालत में पहुंचा. पर सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत और हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए उन तीनों को बरी कर दिया. ये कहानी है, 10 साल पहले दिल्ली में हुए एक गैंगरेप और मर्डर केस की. जिसमें दिल्ली पुलिस की लापरवाही और कमजोर जांच की वजह से तीनों दोषी बच गए. इसलिए कहा जा सकता है कि इस संगीन मामले का कत्ल खुद दिल्ली पुलिस ने कर दिया.
निर्भया कांड दिल्ली की निर्भया को भला कौन भूल सकता है? जिसके साथ 16 दिसंबर 2012 को चलती बस में पांच लोगों ने रेप किया था और फिर उसकी हत्या कर दी थी. निर्भया के साथ हुई इस दरिंदगी ने तब सिर्फ दिल्ली ही नहीं, पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था. गुनहगारों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने के लिेए तब कानून तक बदल दिए गए थे.
निर्भया कांड से पहले बड़ी वारदात लेकिन निर्भया के साथ हुई इस दरिंदगी से कोई 10 महीने पहले 9 फरवरी 2012 को दिल्ली में ही एक और लड़की के साथ ठीक वैसी ही दरिंदगी हुई थी, जिसमें तीन लड़कों ने चलती कार में ना सिर्फ एक लड़की के साथ रेप किया था, बल्कि हैवानियत की सारी हदों से आगे निकल कर ठीक निर्भया की तरह ही उसकी भी हत्या कर दी थी. लड़की को छावला से अगवा कर उस वारदात को अंजाम दिया गया था. जिसके बाद 13 फरवरी को उस लड़की की लाश हरियाणा के रेवाड़ी के खेतों में मिली थी.
दोषियों को मिली फांसी की सजा दिल्ली पुलिस ने इस मामले की जांच की और एक-एक कर तीनों मुल्ज़िमों को गिरफ्तार किया, सबूत जुटाए, गवाहों से बात की और तीन महीने गुजरने के चंद रोज़ बाद ही इस सिलसिले में चार्जशीट भी दाखिल कर दी. और तो और तमाम सबूत और गवाहों की रौशनी में दिल्ली की लोअर कोर्ट ने ना सिर्फ मुल्जिमों को मुजरिम करार दिया, बल्कि मामले को रेयरेस्ट ऑफ द रेयर की शेणी में रखते हुए तीनों को फांसी की सज़ा भी सुना दी. लेकिन जैसा कि ऐसे मामलों में अक्सर देखने को मिलता है, आरोपियों ने हाई कोर्ट में अपील की. हाई कोर्ट ने भी पूरे केस को समझने और सबूतों को देखने के बाद ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा. यानी तीनों के फांसी की सजा पर अपनी मुहर लगा दी.
सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों को यूं किया बरी इसके बाद जब मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा, तो ये केस मानों एकाएक सिर के बल पलट गया. सुप्रीम कोर्ट ने ना सिर्फ पुलिस की जांच पर ऊंगली उठाई, बल्कि एक-एक कर तीनों को बरी कर दिया. लेकिन आखिर ये सब कैसे हुआ? आखिर वो क्या बात थी, जिसने लोअर कोर्ट और हाई कोर्ट की नज़र में दरिंदे करार दिए गए, तीन लड़कों को ना सिर्फ नई जिंदगी दे दी, बल्कि समाज में खुल कर जीने का हक भी दे दिया? आखिर कहां चूक हो गई? तो छावला रेप और मर्डर केस की इस चौंकानेवाली कहानी को समझने के लिए आइए आपको उसी तारीख़ में लिए चलते हैं, जिस दिन इस लड़की के साथ ये वारदात हुई थी.
9 फरवरी 2012, रात 9.18 मिनट, छावला-दिल्ली गुडगांव से अपनी ड्यूटी के बाद वो लड़की रोज़ की तरह अपने घर लौट रही थी. दिल्ली के छावला इलाके में अभी वो हनुमान चौक से कुछ कदम आगे बढ़ी ही थी कि एक सुनसान सड़क पर अचानक बदकिस्मती ने उसे घेर लिया. हुआ यूं कि रास्ते से पैदल गुजरते हुए एक लाल रंग की इंडिका कार में कुछ लड़कों ने उसे जबरन खींच लिया और अपने साथ अगवा कर ले गए. ऐसा तब हुआ, जब उसके साथ तीन और लड़कियां भी पैदल ही अपने-अपने घरों की तरफ जा रही थी, जबकि एक और शख्स भी वहीं रास्ते में मौजूद था. सबने अपने-अपने तौर पर लड़की को बचाने की कोशिश की. किसी ने चीख कर तो किसी ने किसी और तरीके से. लेकिन बदमाश ज़्यादा तेज निकले.
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