
दागी नेता नेता आजीवन चुनाव लड़ सकेंगे या नहीं? सरकार ने SC में हलफनामा देकर साफ किया अपना स्टैंड
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इस मामले में याचिकाकर्ताओं में से एक एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने कोर्ट को बताया था कि लोकसभा के 544 सदस्यों में से 225 के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं. याचिका में संविधान के अनुच्छेद 102 और 191 की आड़ लेने को भी चुनौती दी गई है.
अपराधी पृष्ठभूमि वाले या अपराध की सजा पाए लोग जीवन भर चुनाव लड़ सकेंगे या नहीं इस पर संसद निर्णय करेगी.केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर अपना रुख साफ किया है. सरकार ने यह हलफनामा जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 को धारा 8 और 9 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिए जाने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान दिए गए नोटिस के जवाब में दाखिल किया है.
ये धाराएं किसी भी जनप्रतिनिधि को अपराध साबित होने और सुनाई गई सजा पूरी होने के छह साल बाद तक चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करती है. इसे ही चुनौती दी गई है.सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने 10 फरवरी को हुई सुनवाई के दौरान सरकार से हैरानी जताते हुए पूछा था कि आपराधिक मामलों में दोषी ठहराया गया कोई व्यक्ति विधाई सदन में वापस कैसे जा सकता है? पीठ ने तब तीन हफ्ते में जवाब दाखिल करने का आदेश सरकार को दिया था.
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225 सांसदों के खिलाफ दर्ज हैं आपराधिक केस
इस मामले में याचिकाकर्ताओं में से एक एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने कोर्ट को बताया था कि लोकसभा के 544 सदस्यों में से 225 के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं. याचिका में संविधान के अनुच्छेद 102 और 191 की आड़ लेने को भी चुनौती दी गई है.
ये अनुच्छेद किसी को भी चुनाव लड़ने या सदस्यता से अयोग्य घोषित करने के नियम और शर्त बताते हैं. अपने जवाब में केंद्र सरकार ने कहा कि अनुच्छेद 102 और 191 संसद को सदस्य की अयोग्यता संबंधी कानून बनाने और संशोधन करने की शक्ति देते हैं. सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि अदालत सरकार को कोई कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकती. जबकि याचिका में ऐसा निर्देश देने की मांग है. ये अधिकार सुप्रीम कोर्ट की संविधान प्रदत्त शक्तियों से परे है.

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