
जिस मुख्तार का बस नाम ही काफी था… उसकी मौत के बाद क्या दरक जाएगा अंसारी परिवार का सियासी रसूख?
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जेल में बंद मुख्तार अंसारी अपने साम्राज्य को ढहता हुआ और अपने लोगों को एक-एक कर मरता हुआ देखता रहा. मुख्तार के साथ सिर्फ उसके अपराध खत्म नहीं हुए, बल्कि इसके जरिए बनाया गया उसका साम्राज्य भी योगी आदित्यनाथ की सरकार में तहस-नहस हो गया. यह देखने वाली बात होगी कि अंसारी परिवार मुख्तार के बिना अपनी राजनीतिक पारी कैसे खेलता है.
मोहम्मदाबाद की गलियों में यह चर्चा आम है कि क्या मुख्तार के सुपुर्द-ए-खाक होने के बाद अंसारी परिवार की सियासी साख भी मिट्टी में मिल जाएगी. यह चर्चा इसलिए हो रही, क्योंकि पिछले तीन दशक से मोहम्मदाबाद अंसारी परिवार का अभेद्य किला बना हुआ था. मुख्तार अंसारी का इंतकाल उस राजनीतिक दबदबे के खात्मे की शुरुआत हो सकती है. मुख्तार अंसारी एक ऐसा नाम था, जिसका अपराध और सियासत में सिक्का अस्सी के दशक से लेकर साल 2017 तक चला.
पूर्वांचल के ज्यादातर इलाकों में माफिया डॉन मुख्तार अंसारी की तूती बोलती थी. लेकिन योगी सरकार ने मुख्तार के आपराधिक साम्राज्य को मिट्टी में मिला दिया और उसकी मौत के साथ अंसारी परिवार का सियासी रसूख भी दरकने के कगार पर है. योगी राज में ही मुख्तार अंसारी को लंबित मामलों में सजा मिलनी शुरू हुई. सजाओं का ही खौफ था कि माफिया डॉन जेल की सीखचों के पीछे टूट गया और आखिरकार हार्ट अटैक से मर गया.
मुख्तार के साथ सिर्फ उसके अपराध खत्म नहीं हुए, बल्कि इसके जरिए बनाया गया उसका साम्राज्य भी योगी आदित्यनाथ की सरकार में तहस-नहस हो गया. हजारों करोड़ की संपत्तियां जब्त की गईं. गाजीपुर, मऊ से लेकर लखनऊ तक की संपत्तियों पर बुलडोजर चले. कब्जे में रखी गई बड़ी-बड़ी शत्रु संपत्ति वापस ली गई. सबसे बड़ी बात कि मुख्तार के सभी बड़े शूटर और सहयोगी या तो गैंगवार में मारे गए या फिर पुलिस एनकाउंटर में.
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जेल में बंद मुख्तार अंसारी अपने साम्राज्य को ढहता हुआ और अपने लोगों को एक-एक कर मरता हुआ देखता रहा. मुन्ना बजरंगी की बागपत जेल में हत्या हुई, मुकीम काला की चित्रकूट जेल में हत्या हुई और संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा को लखनऊ की भरी अदालत में गोली मार दी गई. पूरे परिवार पर मामले दर्ज हुए. मुख्तार का बेटा अब्बास अंसारी जेल में है. मुख्तार की पत्नी फरार है. पूरा परिवार आपराधिक और आर्थिक मुकदमों में अदालतों के चक्कर लगा रहा है.
अफजाल अंसारी अब भी इस परिवार की सबसे मजबूत स्तंभ बने हुए हैं. अंसारी परिवार अब अफजाल के इर्द-गिर्द अपनी सियासत बचाए रखने की कोशिश करेगा. 90 के दशक से लेकर 2017 तक अंसारी बंधु गाजियाबाद, मऊ और बलिया में दमदार सियासी रसूख रखते थे. अंसारी परिवार ने यह भांप लिया था कि अब मुख्तार के पुराने दिन नहीं लौटने वाले और बसपा में रहते अफजाल अंसारी के पास कोई सुरक्षा कवर नहीं होगा. इसलिए कुछ वक्त पहले अफजाल समाजवादी पार्टी के साथ हो लिए.

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