चोकाहातूः रांची के पास की वह जगह, जिसे कहा जाता है शोक की भूमि!
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भारत में कई ऐसी पुरातात्विक महत्व की जगह है, जिसे वैज्ञानिक और रिसर्चर वर्ल्ड हेरिटेज घोषित करने की मांग उठाते रहते हैं. ऐसी ही एक जगह झारखंड की राजधानी रांची के पास है. नाम है चोकाहातू. ये जगह मुंडाओं का प्राचीन ससनदिरी है. चोकाहातू का यह स्थल लगभग 2500 साल पुराना मुंडाओं का हड़गड़ी (शवों को दफनाने की प्रक्रिया) स्थल है.
झारखंड की राजधानी रांची के सोनाहातू के पास एक जगह है चोकाहातू. चोकाहातू को स्थानीय भाषा में “शोक की भूमि” कहते हैं. यहीं पर भारत की सबसे बड़ी मेगालिथिक साइट मिलने का दावा किया जा रहा है. मेगालिथिक साइट (Megalithic Site) और स्ट्रक्चर को आसान शब्दों में हम हजारों साल पुराना कब्रिस्तान या मकबरा कह सकते हैं. यह इलाका करीब सात एकड़ में फैला हुआ है. जियोलॉजिस्ट डॉ. नीतीश प्रियदर्शी के अनुसार यह स्थल 2500 साल पुराना है.
डॉ. नीतीश प्रियदर्शी बताते हैं कि जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है कि यहां पुराने जमाने में शवों को दफनाने की परंपरा रही होगी. इसका सबूत यहां एक बड़े भूभाग में पाए जाने वाले मेगालिथिक स्ट्रक्चर हैं. जब इस जगह के बारे में जानकारियां जुटाना शुरू कीं तो पता चला कि ये जगह मुंडाओं का प्राचीन ससनदिरी (megaliths) है. चोकाहातू का यह स्थल लगभग 2500 साल पुराना मुंडाओं का हड़गड़ी (शवों को दफनाने की प्रक्रिया) स्थल है. ऐसा कहा जाता है कि मुंडा हजारों साल से यहां अपने पूर्वजों को गाड़ते आ रहे हैं. मेगालिथ को ही मुंडारी भाषा में ससनदिरी कहते हैं. 1873 में कर्नल इ.टी डॉल्टन ने इस मेगालिथिक साइट पर लिखा था लेख नीतीश प्रियदर्शी बताते हैं कि कर्नल ई.टी. डाल्टन ने 1873 में इस मेगालिथिक साइट पर एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल में एक लेख लिखा था. अपने लिखे इस लेख में चोकाहातू मेगालिथिक साइट का क्षेत्रफल उन्होंने करीब सात एकड़ बताया था. इसमें 7300 पत्थर गड़े हुए बताए गए. झारखंड में इतने विस्तृत क्षेत्र में मेगालिथिक साइट कहीं नहीं हैं.
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यहां ग्रेनाइट और डोलमेन पत्थरों से बने हैं मेगालिथ्स ये भी माना गया है कि भारत के सबसे बड़े ससनदिरी यानी मेगालिथ में से ये भी एक है. वैसे रांची के पिस्का मोड़ में भी बहुत बड़ा मेगालिथ क्षेत्र है. चोकाहातू में जो पत्थर रखे गए हैं, वो अधिकांश ग्रेनाइट नीस /schist और ग्रेनाइट के हैं. यहां पर सभी मृतक स्मारक पत्थर (Dolmen) हैं. ये चौकोर और टेबलनुमा हैं. यहां आज भी मुंडा लोग मृतकों को दफनाते हैं या फिर मृतकों के ‘हड़गड़ी’ की रस्म संपन्न करते हैं.
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