
चीन संग 'जीरो टैरिफ' मार्केट पर क्यों राजी नहीं हो सकता भारत? ट्रंप के टैरिफ से भी बड़ी टेंशन
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चीन ने भारत को जीरो टैरिफ का लुभावना ऑफर बहुत पहले दिया है, RCEP इसका प्लेटफॉर्म है. लेकिन भारत इसे लेकर सतर्क है. भारत का चीन के साथ पहले से ही व्यापार घाटा बहुत ज्यादा है. 2024-25 वित्तीय वर्ष में भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा 99.2 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है. भारत को आशंका है कि RCEP में शामिल होने से देश में सस्ते चीनी सामानों की बाढ़ आ सकती है.
भारत पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने टैरिफ का प्रेशर बनाया तो चीन की नजरें भारत के विशाल मार्केट पर गड़ गईं. चीन ने भारत को जीरो टैरिफ वाले एक विशाल मार्केट में शामिल होने का न्योता दिया है और इसके पक्ष में लॉबिंग की है. लेकिन चीन का ये लुभावना ऑफर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ से भी बड़ी टेंशन साबित हो सकती है.
भारत का विशाल बाजार, 1.4 अरब की आबादी, मध्य वर्ग की दमदार क्रय शक्ति इसे दुनिया के किसी भी महत्वाकांक्षी देश के लिए आकर्षक बाजार बनाती है. भारत को शामिल किए बिना किसी भी महाशक्ति की आर्थिक ताकत बुलंदी हासिल नहीं कर सकती है. इसलिए अमेरिका से टैरिफ को लेकर तनाव बढ़ने पर चीन ने भारत को 'क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी' (Regional Comprehensive Economic Partnership-RCEP) में शामिल होने का ऑफर एक बार फिर दिया है.
चीन 2019 से ही भारत को RCEP में शामिल करवाने की कोशिश कर रहा है. इसके लिए चीन ने भारत को एक विशाल मार्केट में जीरो टैरिफ का लालच दिया है. लेकिन भारत ने चीनी महत्वाकांक्षाओं को पहचानते हुए अब तक इस संगठन में शामिल होने से इनकार किया है.
क्या है RCEP
RCEP यानी कि क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी 15 देशों के बीच का मुक्त व्यापार समझौता है. इसमें 10 आसियान देश और उनके FTA भागीदार- चीन, जापान, कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड शामिल हैं. RCEP अभी विश्व का सबसे बड़ा व्यापारिक ब्लॉक है, जो वैश्विक GDP का लगभग 30% और लगभग 3 अरब लोगों को कवर करता है.
इसका उद्देश्य व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिए इसके सदस्य देशों के बीच व्यापार नियमों को आसान, सहज, सरल बनाना है और सभी 15 देशों के मार्केट को इंटीग्रेट करना है. RCEP समझौता नवंबर 2020 में अमल में आया था और 1 जनवरी 2022 से प्रभावी है.













