
घर बेचकर फिल्म बनाने वाला वो डायरेक्टर जिसने संवार दिया माधुरी दीक्षित, नाना पाटेकर का करियर
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एन चंद्रा उन फिल्ममेकर्स में से थे जिनका सिनेमा 80s के अंत में एक फ्रेश बदलाव की तरह आया. चंद्रा ने 'अंकुश' और उसके बाद भी कई यादगार फिल्में बनाईं और नाना पाटेकर समेत कई कलाकारों को लैंडमार्क फिल्में दीं. मगर 'अंकुश' के बनने की कहानी एन चंद्रा के सिनेमाई प्यार की एक गजब कहानी है.
80 का दशक बीत रहा था और अमिताभ बच्चन की पहचान बन चुकी 'एंग्री यंगमैन' वाली इमेज के तमाम वेरिएशन बड़े पर्दे पर फैले हुए थे. हर एक्शन हीरो सिस्टम से लड़ रहा था. कहानियों के हिसाब से बस ये सिस्टम बदल जाता था. कहीं वो सरकारी मशीनरी और करप्शन होता था, तो कहीं पर इलाके का डॉन या गांव के जमींदार टाइप लोग सिस्टम की भूमिका में थे. फिल्मों का लुक भी बदल रहा था और ग्लैमरस, चमचमाती सेटिंग वाली फिल्में ज्यादा बन रही थीं.
ऐसे में एक फिल्म आई जिसमें पढ़-लिखकर छोटी-छोटी नौकरियां करने को मजबूर चार यंग लड़के खुद ही सिस्टम बन गए. उनकी एक साथी का गैंग रेप होता है और आरोपी सबूत ना मिलने के कारण बच निकलते हैं. हताश लड़की आत्महत्या कर लेती है और तब उसके ये चारों दोस्त उसका बदला लेते हुए, उसके हर एक गुनाहगार को मौत के घाट उतार देते हैं.
इन लड़कों में से कहानी में जो चेहरा 'हीरो' की शक्ल में हाईलाइट हुआ, वो थे नाना पाटेकर. फिल्म थी 'अंकुश' (1986) और डायरेक्टर थे एन चंद्रा. वो उन फिल्ममेकर्स में से थे जिनका सिनेमा उस वक्त एक फ्रेश बदलाव की तरह आया. चंद्रा ने 'अंकुश' के बाद भी कई यादगार फिल्में बनाईं और नाना पाटेकर समेत कई कलाकारों को लैंडमार्क फिल्में दीं. मगर 'अंकुश' के बनने की कहानी एन चंद्रा के सिनेमाई प्यार की एक गजब कहानी है.
घर और बहन-बीवी के गहने बेचकर बनाई 'अंकुश' 4 अप्रैल 1952 को जन्मे चंद्रशेखर नार्वेकर उर्फ एन चंद्रा ने अपने कई इंटरव्यूज में बताया है कि उन्हें सिनेमा में आने का ऐसा कोई खास एम्बिशन नहीं था. स्कूलिंग पूरी करने के बाद उन्हें बस एक नौकरी की तलाश थी तो उन्होंने एक फिल्म सेंटर से काम शुरू किया, जहां पहले उनके पिता नौकरी करते थे. उन्होंने शुरुआत क्लैपबॉय के तौर पर की थी, मगर धीरे-धीरे आगे बढ़ते गए और एडिटर के साथ-साथ असिस्टेंट डायरेक्टर भी रहे.
ये सब काम करते हुए चंद्रा अच्छी कमाई कर रहे थे और मुंबई में एक घर ले चुके थे. लेकिन बाय चांस फिल्मों में आए चंद्रा का दिल फिल्मों में रम चुका था. फाइनली गुलजार की फिल्म 'मेरे अपने' से इंस्पायर होकर उन्होंने भी अपनी पहली फिल्म बनाने का फैसला किया. 'अंकुश' यही फिल्म थी. लेकिन चंद्रा ये नहीं चाहते थे कि फिल्म बनाते हुए कोई उनकी क्रिएटिविटी को बदलने की कोशिश करे और इसका एक ही तरीका था- फिल्म प्रोड्यूस भी खुद की जाए.
इसका उपाय निकालते हुए चंद्रा ने अपना घर बेच दिया और जो पैसे आए, वो फिल्म में लगा दिए. बाद में और जरूरत पड़ी तो चंद्रा ने अपनी बहन और पत्नी के गहने बेचकर पैसों का जुगाड़ किया. बजट लिमिटेड था इसलिए उन्होंने तय किया कि किसी भी एक्टर को 10 हजार से ज्यादा फीस नहीं देंगे. चंद्रा ने 'अंकुश' की कहानी, मराठी सिनेमा के पॉपुलर स्टार रविंद्र महाजनी को दिमाग में रखते हुए लिखी थी लेकिन वो बड़े स्टार थे और 10 हजार में उनका आना मुश्किल था. तो उनकी जगह चंद्रा ने नाना पाटेकर को लिया जो 'गमन' (1978) से डेब्यू करने के बाद एक ब्रिटिश टीवी सीरीज और 'आज की आवाज' (1984) में सपोर्टिंग रोल कर चुके थे.

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