गांधी-आंबेडकर का वो फॉर्मूला जिसे महिला आरक्षण पर लागू करने की हो रही है चर्चा, जानिए क्या है डुअल सीट सिस्टम
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महिला आरक्षण बिल संसद में आने वाला है और इसका स्वरूप क्या होगा, क्या ये 2024 के चुनाव से ही लागू होगा? इसे लेकर चर्चा शुरू हो गई है. चर्चा डुअल सीट सिस्टम की भी हो रही है. डुअल सीट सिस्टम क्या है और ये कहां से आया?
केंद्र सरकार संसद के विशेष सत्र में महिला आरक्षण बिल पेश करने को तैयार है. कैबिनेट से मंजूरी के बाद ये बिल आज यानी 19 सितंबर को कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल संसद में पेश करने वाले हैं. इसे पहले लोकसभा में पेश किया जाएगा. कांग्रेस लंबे समय से महिला आरक्षण बिल लाने की मांग सरकार से करती रही है. जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने भी इस बिल के समर्थन का ऐलान किया है. ऐसे में इस बिल का दोनों सदनों से पारित होना भी तय माना जा रहा है.
अब सवाल ये है कि क्या संसद से ये बिल पारित होने के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में महिलाओं के सीटें आरक्षित हो पाएंगी? इंडिया टुडे के लिए पॉलोमी साहा की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार इसे 2024 चुनाव से ही लागू करने की तैयारी में है. इसके लिए जरूरी परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने तक एक तिहाई सीटों पर डुअल मेंबरशिप फॉर्मूला आजमाया जा सकता है. अगर सरकार डुअल मेंबरशिप फॉर्मूले पर आगे बढ़ती है तो लोकसभा की कुल सदस्य संख्या 543 में से 180 यानी करीब एक तिहाई सीटों पर एक महिला समेत दो सांसद चुने जाएंगे. वहीं, कहा ये भी जा रहा है कि महिला आरक्षण बिल के लिए डुअल सीट फॉर्मूले का इस्तेमाल नहीं होगा.
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इस बिल में डुअल सीट फॉर्मूले पर सरकार आगे बढ़े या किसी और फॉर्मूले पर, ये फॉर्मूला चर्चा में आ गया है. ये डुअल सीट फॉर्मूला क्या है और कैसे लागू होता है? अगर डुअल मेंबरशिप फॉर्मूला लागू हुआ तो क्या होगा, कैसे होगा, इन सबको लेकर भी बहस छिड़ गई है. दरअसल, ये फॉर्मूला भारतीय चुनाव प्रक्रिया के लिए नया नहीं है. देश की आजादी के बाद शुरुआती दो आम चुनावों में एससी-एसटी वर्ग को प्रतिनिधित्व देने के लिए इसी फॉर्मूले का इस्तेमाल हुआ था.
पहले आम चुनाव 1951-52 में हर तीन में से एक सीट डुअल मेंबरशिप के लिए आरक्षित थी. ऐसी सीटों की संख्या तब 86 थी. इन सीटों से दो-दो सांसद निर्वाचित होते थे. तब एक सामान्य वर्ग के उम्मीदवार के साथ ही एक एससी-एसटी वर्ग का प्रतिनिधि भी चुनकर संसद पहुंचता था. 1957 में हुए दूसरे चुनाव के समय डुअल सीटों की संख्या 91 पहुंच गई. 1961 के तीसरे चुनाव में एससी-एसटी के लिए अलग से सीटें आरक्षित किए जाने के बाद डुअल सीट की व्यवस्था समाप्त हो गई थी.
कैसे अस्तित्व में आया ये फॉर्मूला
‘जिस घर में कील लगाते जी दुखता था, उसकी दीवारें कभी भी धसक जाती हैं. आंखों के सामने दरार में गाय-गोरू समा गए. बरसात आए तो जमीन के नीचे पानी गड़गड़ाता है. घर में हम बुड्ढा-बुड्ढी ही हैं. गिरे तो यही छत हमारी कबर (कब्र) बन जाएगी.’ जिन पहाड़ों पर चढ़ते हुए दुख की सांस भी फूल जाए, शांतिदेवी वहां टूटे हुए घर को मुकुट की तरह सजाए हैं. आवाज रुआंसी होते-होते संभलती हुई.
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