खेकड़ा का बाहुबली, डीपी यादव से टकराव... खतौली से चुनाव जीतने वाले मदन भैया की कहानी
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खतौली विधानसभा सीट पर आरएलडी-सपा गठबंधन के उम्मीदवार मदन भैया ने शानदार जीत हासिल की है. उन्होंने बीजेपी प्रत्याशी राजकुमार सैनी को 22,165 वोटों से हराया है. पहले भी चार बार विधायक रह चुके मदन भैया का किरदार सियासत में एक बाहुबली नेता का है.
यूपी में मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में आरएलडी-सपा गठबंधन के उम्मीदवार मदन भैया ने शानदार जीत हासिल की है. उन्होंने बीजेपी प्रत्याशी राजकुमार सैनी को 22,165 वोटों से हराया है. पहले भी चार बार विधायक रह चुके मदन भैया का किरदार सियासत में एक बाहुबली नेता का है. और जब कोई बाहुबली राजनीति करता है तो जुर्म और विवाद से उनका नाता होना आम बात मानी जाती है. ऐसा ही कुछ मदन भैया के साथ भी है. इस जीत के बाद कई लोग जानना चाहते हैं आखिर कौन हैं ये मदन भैया? क्या है इनका इतिहास? तो चलिए जानते हैं.
कौन हैं मदन भैया? खतौली के नवनिर्वाचित विधायक मदन भैया का असली नाम मदन सिंह कसाना है. लोग उन्हें मदन भैया के तौर पर ज्यादा जानते हैं. उनका जन्म 11 सितंबर 1959 को जिला गाजियाबाद के जावली में हुआ था. जावली एक गुर्जर बाहुल्य इलाका है. उनके पिता का नाम भूलेराम कसाना है, जो पेशे से वकील और पटवारी थे और उनकी माता का नाम होश्यारी देवी है. उन्होंने मेरठ विश्वविद्यालय ने शिक्षा ग्रहण की. उनका परिवार काफी संपन्न था. उन की तीन बहनें हैं. मदन भैया की शादी गीता कसाना के साथ हुई थी. अब उनका एक बेटा और दो बेटियां हैं.
छात्र जीवन और दबंगई मदन सिंह कसाना उर्फ मदन भैया अपने छात्र जीवन से ही काफी तेज तर्रार थे. यही वजह थी कि कॉलेज में रहने के दौरान ही उनकी दबंग छवि दिखने लगी थी. वो एक छात्र नेता के तौर अपनी पहचान बनाने लगे थे. कई बार छात्रों के आपसी विवाद और झगड़ों में उनका नाम आया. उनके दबंग स्वभाव ने ही उन्हें अपने कॉलेज और इलाके में कुख्यात कर दिया था. युवावस्था में अक्सर उनका नाम लड़ाई-झगड़ों में आ जाता था. कॉलेज में उनके सीनियर हों या टीचर सभी उन्हें भैया या भैया जी कहने लगे थे. वहीं से मदन भैया के तौर पर उनकी पहचान बनी. आगे चलकर उनका यही नाम सियासी गलियारों में उनकी पहचान बन गया.
राजनीति का सफर मदन भैया ने वर्ष 1989 में पहली बार निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर बागपत की खेकड़ा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था. उस वक्त वो मारपीट से जुड़े एक मामले में सलाखों के पीछे थे. उन्होंने अपना पहला चुनाव जेल में रहते हुए ही लड़ा था. जिसमें वो दूसरे स्थान पर रहे थे. उनके इस चुनावी प्रदर्शन ने सभी सियासी दलों को हैरान कर दिया था. 15 साल पहले तक बागपत की खेकड़ा सीट उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी विधानसभा सीट थी. इसी चुनाव के लिए उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन दाखिल करने से पहले उन्होंने नाम परिवर्तन के लिए एक हलफनामा भी दाखिल किया था. वे खेकड़ा विधानसभा सीट से ही चार बार विधायक रहे.
चुनाव और हार-जीत 1991 - उस साल भी मदन भैया जेल में ही थे. मगर इस बार वो जनता दल के टिकट पर खेकड़ा से ही विधानसभा चुनाव लड़े और लोकदल के उम्मीदवार रिछपाल बंसल को बड़े अतंर से हराया.
1993 - फिर से मदन भैया ने विधानसभा चुनाव में खेकड़ा से ही चुनाव लड़ा. लेकिन इस बार वो समाजवादी के टिकट पर चुनाव लड़े और फिर से जीत कर विधानसभा पहुंचे.
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