क्यों जोकरों को देखकर ज्यादातर लोग डर जाते हैं, क्लबों में अश्लील मजाक से लेकर सीरियल किलर तक- डराने वाला है इनका इतिहास
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सत्तर के दशक में एक अमेरिकी शख्स ने जोकर बनकर बहुत सी हत्याएं कीं. उसे सीरियल किलर क्लाउन कहा गया. इसके बाद से जोकरों को लेकर लोगों के मन में जो डर बैठा, वो आज तक नहीं जा सका. विज्ञान मानता है कि किसी भी तरह के फोबिया में जोकरों से डर सबसे ऊपर है. इसे कोर्लोफोबिया कहते हैं. बच्चे ही नहीं, बड़ों को भी जोकरों से डर लगता है.
प्राचीन रोम में अंतिम संस्कार के समय जब परिवार के लोग शोक में डूबे होते, तभी कहीं से एक जोकरनुमा शख्स आ जाता. वो चेहरे पर रंग लगाए होता, अलग तरह के कपड़े पहनता और अजीबोगरीब बातें करता. ये आर्किमिमस होता था. लैटिन में जिसका मतलब है नकल उतारने वाला एक्टर. ये मर चुके शख्स तक की नकल उतारता.
अंतिम संस्कार के समय जोकरों की भूमिका जोकर आम लोगों की ही नकल नहीं करता था, राजाओं की मौत पर भी उसका यही काम होता. दुख वाले माहौल को हल्का-फुल्का बनाने के लिए आर्किमिमस की खोज हुई. मौत के माहौल को सामान्य बनाने के लिए ये कई बार भद्दे मजाक भी कर जाता, लेकिन उसे हर बात की छूट थी. बैड क्लाउन नाम की किताब में लेखक बेंजामिन रेडफोर्ड बताते हैं कि रोम के सख्त शासकों का जोकर खूब दिल लगाकर मजाक उड़ाते.
19वीं सदी में जोकरों का काम बदला वे अंतिम संस्कार से हटकर क्लब में पहुंच गए. ये एडल्ट नाइट क्लब होते, जहां जोकरों का काम बदल गया. रंगीन नाक और लंबे कान लगाकर वे द्विअर्थी मजाक करते. ज्यादातर बातें यौन संबंधों के आसपास घूमा करतीं. ये क्लब एक तरह का सर्कस ही थे. तब कई अमेरिकी राज्यों ने जोकरों वाले इन क्लब्स पर बैन लगाने की भी शुरुआत की थी. सर्कस हिस्टोरियन जेनेट डेविस ने तब के सर्कस और जोकरों के रोल पर खूब काम किया था. वे साफ कहते थे कि जोकरों का अपना डार्क साइड है जो कम से कम बच्चों को हंसाने के काम तो नहीं आ सकता.
सर्कस की हुई मेनस्ट्रीमिंग साल 1890 के आसपास जोकरों को बच्चों से जोड़ा जाने लगा. अमेरिकी शोमैन पीटी बरमैन ने क्लीनअप कैंपेन चलाया. ये सर्कस को ज्यादा साफ-सुथरा बनाने की मुहिम थी. इसमें जंगली जानवर जोड़े गए जो शो दिखाते, रिंगमास्टर शामिल हुए, जो उनपर काबू रखते. सर्कस की मेन ऑडियंस थे बच्चे. क्लब में परफॉर्म करते जोकरों को मुख्यधारा सर्कस से जोड़ दिया गया. इसका मसकद साफ था, ज्यादा से ज्यादा पैसे बनाना. बच्चे आएंगे तो साथ में उनके पेरेंट्स भी आएंगे. इस तरह से रात में क्लबों में थोड़ी-सी भीड़ के आगे भद्दे मजाक करने वाले जोकर हंसाने वाले एक्ट करने लगे.
इसी दौर में कई चैरिटी संस्थाएं आगे आईं और जोकरों को बच्चों के अस्पताल भेजने लगीं ताकि बीमार बच्चे हंस सकें. मैकडोनॉल्ड ने भी इसी समय अपने ब्रांड प्रमोशन के लिए जोकर के पुतले को अपनी पहचान बना लिया. भले ही जोकरों को बच्चों से जोड़ने की मुहिम चल पड़ी थी, लेकिन बच्चे उससे डरते थे.
जोकरों में कुछ तो है असामान्य साल 2016 में साइंस डायरेक्ट जर्नल में एक स्टडी छपी, जिसमें दुनिया के लगभग सभी कामों के बारे में बताते हुए पूछा गया कि कौन सा काम सबसे डरावना है. इसमें ज्यादातर लोगों ने जोकर को क्रीपी माना. ऑन द नेचर ऑफ क्रीपीनेस नाम से छपे इस अध्ययन में माना गया कि जोकर चूंकि नकली इमोशन ओढ़े हुए होता है तो लोग नहीं जान पाते कि उसके मन में क्या चल रहा है. यही बात उन्हें डरावना बनाती है.