
क्या होते हैं डमी स्कूल, NEET JEE की कोचिंग में होता है इनका रोल? केंद्रीय शिक्षामंत्री भी इस मुद्दे पर गंभीर
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कोटा में छात्रों की बढ़ते आत्महत्या के मामलों पर धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि किसी की जान नहीं जानी चाहिए..वे हमारे बच्चे हैं. उनके साथ क्या हो रहा है, इसके बारे में उनके पास परिपक्वता या ज्ञान भी नहीं है. छात्रों को तनाव मुक्त रखना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है. इस पर उन्होंने सरकार का प्लान बताया.
केंद्रीय शिक्षामंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कल एक न्यूज एजेंसी को दिए इंटरव्यू में इस साल राजस्थान के कोटा में रिकॉर्ड छात्र आत्महत्याओं पर अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि यह एक बहुत ही संवेदनशील मुद्दा है. किसी की जान नहीं जानी चाहिए..वे हमारे बच्चे हैं. उनके साथ क्या हो रहा है, इसके बारे में उनके पास परिपक्वता या ज्ञान भी नहीं है. छात्रों को तनाव मुक्त रखना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है. केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने डमी स्कूलों पर कहा कि डमी स्कूलों के मुद्दे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. पीटीआई को दिए एक साक्षात्कार में प्रधान ने कहा कि कोई भी जान नहीं जानी चाहिए और केंद्र यह सुनिश्चित करने के लिए पहल कर रहा है कि कोचिंग की आवश्यकता नहीं है और स्कूली शिक्षा पर्याप्त है.
उन्होंने आगे कहा कि देश में पर्याप्त सकारात्मक मॉडल हैं, उन्हें दोहराया जाना चाहिए... प्रौद्योगिकी के माध्यम से, सामाजिक पहुंच के माध्यम से, देखभाल और परामर्श के माध्यम से. एनसीईआरटी इस पर विचार-मंथन कर रहा है, शिक्षा विभाग भी काम कर रहा है... राज्य सरकार भी आगे आ रही है. विभिन्न सकुर्लर्स और दिशानिर्देशों के साथ...लेकिन समाज को इस मुद्दे पर कार्यान्वयन के मोर्चे पर एक साथ काम करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि इस साल देश के कोचिंग हब में छात्रों की आत्महत्या की सबसे अधिक संख्या देखी गई है. अब तक 23 स्टूडेंट जान दे चुके हैं. 27 अगस्त को कुछ ही घंटों के अंतराल में दो ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली. पिछले साल यह संख्या 15 थी.
क्या है डमी स्कूल का मुद्दा ऐसा देखा गया है कि कई कोचिंग संस्थान बच्चों को सातवीं कक्षा से ही नीट या जेईई की तैयारी कराने लगते हैं. इसमें 'डमी स्कूल' बड़ा रोल निभाते हैं. वो आम स्कूलों की तरह होते हैं बस यहां ऐसे छात्रों को रेगुलर कक्षाओं में न आने की सहूलियत मिलती है. ऐसे में बच्चा जेईई मेन, जेईई एडवांस, नीट परीक्षा आदि की तैयारी में जुट जाता है, उधर बोर्ड की तैयारी खुद पढ़कर या कोचिंग की मदद से करता है. इस मुद्दे पर दिल्ली हाईकोर्ट भी कह चुकी है कि डमी स्कूलों की तादाद में तेजी से हो रही वृद्धि उन छात्रों के करियर पर बुरा असर डाल रही है जो वास्तव में स्थानीय शिक्षा मानदंड को पूरा करते हैं.
तैयारी के साथ डमी स्कूलों में पढ़ते हैं बच्चे इंजीनियरिंग और मेडिकल प्रवेश परीक्षा जेईई और एनईईटी की तैयारी के लिए हर साल 2.5 लाख से अधिक छात्र कोटा जाते हैं. कई उम्मीदवार अपने गृह राज्य के स्कूलों में दाखिला लेते हैं और कोचिंग कक्षाओं में भाग लेने के लिए कोटा चले जाते हैं. वे केवल सीधे बोर्ड परीक्षा में बैठते हैं और रेगुलर फुल टाइम स्कूलों में नहीं जाते हैं. "डमी स्कूलों" के मुद्दे को कई विशेषज्ञों ने उठाया है, जिनका मानना है कि स्कूल न जाने से छात्रों के व्यक्तिगत विकास में बाधा आती है और वे अक्सर अलग-थलग और तनावग्रस्त महसूस करते हैं.
डमी स्कूलों पर बोले धर्मेंद्र प्रधान धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि "डमी स्कूलों" के मुद्दे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है हालांकि छात्रों की कुल संख्या की तुलना में ऐसे छात्रों की संख्या बहुत अधिक नहीं है. लेकिन समय आ गया है कि इस विषय पर गंभीर चर्चा और विचार-विमर्श किया जाए. मंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए काम कर रही है कि छात्रों को कोचिंग की आवश्यकता न पड़े. "हम यह सुनिश्चित करने के लिए प्रयास और पहल कर रहे हैं कि कोचिंग की आवश्यकता नहीं है और हमारे पास एक प्रगतिशील और छात्र केंद्रित शिक्षा प्रणाली है.
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