
कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव: दिग्विजय से 'डरे' गांधी परिवार के लिए मजबूरी का नाम मल्लिकार्जुन?
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कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में अशोक गहलोत के बाहर होने और दिग्विजय सिंह के चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे की एंट्री हुई है. कांग्रेस हाईकमान से हरी झंडी मिलने के बाद खड़गे चुनाव लड़ने लिए मैदान में उतरे हैं. जिसके बाद दिग्विजय सिंह ने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं. इस तरह से कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव अब शशि थरूर बनाम मल्लिकार्जुन खड़गे के बीच होगा.
अशोक गहलोत का नाम हटने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद के दावेदारों में दिग्विजय सिंह और शशि थरूर ही मैदान में बचे थे. दिग्विजय ने केरल से दिल्ली आकर नामांकन पत्र भी ले लिया था और उनके प्रस्तावों की लिस्ट भी तैयार थी. ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष के लिए पूर्व मंत्री मल्लिकार्जुन खड़गे ने सोनिया गांधी से मिलने के बाद चुनावी मैदान में उतरने के लिए ताल ठोका, जिसके बाद दिग्विजय ने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं. इस तरह से खड़गे भले ही छुपे रुस्तम साबित हुए, लेकिन सवाल उठता है कि क्या दिग्विजय के चुनाव लड़ने के ऐलान से गांधी परिवार 'डर' गया था.
कांग्रेस अध्यक्ष पद के उम्मीदवार के तौर पर मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम पार्टी के विचार-मंथन सत्र के दौरान सामने आया, जब अशोक गहलोत दौड़ से बाहर हो गए. सीएम गहलोत ने सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद गुरुवार को नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए घोषणा की है कि वह कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ेंगे. वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष के लिए कई नाम सामने आए, जिनमें दिग्विजय सिंह से लेकर मुकुल वासनिक और कुमारी शैलजा तक शामिल थे.
दिग्विजय सिंह कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने के लिए भारत जोड़ो यात्रा छोड़कर दिल्ली आ गए थे. चुनाव लड़ने के लिए बकायदा नामांकन पत्र भी ले लिया था और चुनाव लड़ने का दम भर रहे थे. मध्य प्रदेश में उनके करीबी नेताओं की लिस्ट भी सामने आ गई थी, जो नामांकन के लिए उनके प्रस्तावक बनने को तैयार थे. ऐसे में आखिर क्या वजह रही कि दिग्विजय सिंह खड़गे के खिलाफ चुनाव लड़ने से पीछे हट गए.
दिग्विजय सिंह ने कहा कि खड़गे हमारे पुराने साथी और वरिष्ठ सहयोगी हैं. ऐसे में हमने फैसला किया है कि हम उनके खिलाफ चुनाव नहीं लड़ेंगे. दिग्विजय भले ही ये बात कह रहे हैं लेकिन सियासी तौर पर यह बात किसी को भी पच नहीं रही है. दिग्विजय एक जनाधार वाले नेता हैं और संगठन का लंबा अनुभव है. इतना ही नहीं वो अपने स्टैंड पर कायम रहने वाले नेताओं में शुमार होते हैं लेकिन उनकी छवि मुस्लिम परस्त और हिंदू विरोधी नेता के तौर बन गई है. ऐसे में गांधी परिवार के लिए अध्यक्ष पद पर दिग्विजय को स्वीकार करना आसान नहीं था.
राजस्थान के सियासी घटनाक्रम और गहलोत से कांग्रेस हाईकमान का विश्वास टूटने के बाद खड़गे पार्टी अध्यक्ष पद के लिए पहली पसंद बनकर उभरे. गहलोत के मैदान छोड़ते ही मल्लिकार्जुन खड़गे ने ताल ठोक दी है. खड़गे कर्नाटक से आते हैं और दलित समुदाय से हैं. वो जमीनी नेता रहे हैं और लंबा सियासी अनुभव है. छात्र राजनीति से आए खड़गे ने मजदूरों के हक लंबी लड़ाई लड़ी और 8 बार विधायक और तीन बार सांसद बने.
खड़गे राज्य से लेकर केंद्र तक में मंत्री रहे और नेता प्रतिपक्ष के तौर पर संसद में भूमिका निभाई है. कांग्रेस के लिए सियासी और क्षेत्रीय समीकरण के लिहाज से भी खड़गे फिट बैठते हैं. माना जा रहा है कि कांग्रेस उनके जरिए दलित कार्ड खेलने की कवायद में हैं. दलित समाज से आने वाले खड़गे को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर देश भर में सियासी संदेश देने की रणनीति है तो दक्षिण से लेकर उत्तर तक को साधने का दांव.

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