एमपी में बीजेपी की चुनावी रणनीति के सेंटर पॉइंट में आदिवासी, मोदी-शाह भी लगाएंगे जोर
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मध्य प्रदेश में 'आदिवासी वोटर जिसके साथ, सत्ता की चाबी उसके हाथ' का नारा बहुत प्रचलित है. पिछले चुनाव में आदिवासी छिटकने के कारण बीजेपी करीबी अंतर से हार गई थी और 15 साल बाद पार्टी को सत्ता गंवानी पड़ी थी. इस बार बीजेपी की चुनावी रणनीति के सेंटर पॉइंट में आदिवासी ही हैं.
मध्य प्रदेश में कुछ ही महीनों बाद विधानसभा चुनाव होने हैं और चुनावी मौसम में आदिवासी सूबे की सियासत का सेंटर पॉइंट बन गए हैं. सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सूबे की सत्ता के शीर्ष पर दोबारा काबिज होने की जंग में पूरा फोकस आदिवासियों पर ही शिफ्ट किए हुए है. इसकी वजह भी है.
आदिवासी मतदाताओं का भरोसा फिर से जीतने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ताबड़तोड़ बैठकें कर रहे हैं. वे आदिवासी बहुल जिलों का जमीनी फीडबैक ले रहे हैं. उधर, बीजेपी रानी दुर्गावती गौरव यात्रा के जरिए मतदाताओं के बीच अपने सबसे बड़े चेहरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ उतरने के प्लान के साथ तैयार है. 22 जून को गृह मंत्री अमित शाह आदिवासी बहुल बालाघाट से यात्रा की शुरुआत करेंगे. समापन 27 जून को शहडोल पहुंचकर होगा जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शिरकत करेंगे.
अमेरिका दौरे पर गए पीएम मोदी स्वदेश लौटने के बाद 27 जून को मध्य प्रदेश में होंगे. वे राजधानी भोपाल से वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाएंगे. इसके बाद शहडोल के कार्यक्रम में भाग लेंगे. मोदी शहडोल जिले के पकरिया गांव में आयोजित कार्यक्रम में आयुष्मान कार्डधारकों से बात करेंगे. उनका गांव के बैगा, गोंड और कोल आदिवासी जाति के मुखिया के साथ भोजन करने का भी कार्यक्रम है.
सियासत के सेंटर में आदिवासी क्यों?
मध्य प्रदेश में करीब 22 फीसदी मतदाता आदिवासी हैं. सूबे की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. करीब 90 सीटें ऐसी हैं जहां आदिवासी मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं. यही कारण है कि चुनावी साल में बीजेपी का फोकस आदिवासी वोट पर शिफ्ट हो गया है.
2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी से आदिवासी वोटर छिटके तो पार्टी कांग्रेस से मात खाकर सत्ता गंवा बैठी. 2013 में जहां बीजेपी को अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 47 में से 31 सीटों पर जीत मिली थी, वहीं 2018 में कांग्रेस 30 सीटें जीतने में सफल रही.
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