उइगर मुसलमान ही नहीं, चीन में इन अल्पसंख्यकों के साथ भी होती रही नाइंसाफी
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लगभग 9 साल पहले चीन के युन्नान में कुछ उइगरों ने एक ट्रेन स्टेशन पर 150 लोगों को जख्मी कर दिया. इसके तुरंत बाद चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने आतंक को कुचलने का ऐलान कर दिया. तब से लेकर अब तक लाखों उइगर मुसलमान घरों से उठाकर कैपों में डाले जा चुके. देश अकेला उन्हीं पर सख्त नहीं हुआ. यहां माइनोरिटी तेजी से अपनी पहचान खो रही है.
मई 2014 में चीन की सरकार ने एक कैंपेन शुरू किया, जिसका नाम था- स्ट्राइक हार्ड कैंपेन अगेंस्ट वायलेंट टैररिज्म. शिनजिंयाग प्रांत में चली इस मुहिम में उइगर और बाकी तुर्क मुसलमान छांटे गए और उन्हें री-एजुकेशन कैंपों में भेज दिया गया. समय-समय पर इंटरनेशनल मीडिया इन कैंप्स की सैटेलाइट इमेज जारी करता है, जिसमें कंटीली बाड़ से घिरी हुई अकेली इमारतें दिखती हैं. किसी शहर वाली कोई रौनक यहां नहीं होती. इन जगहों पर रखे गए लोग री-एजुकेट किए जा रहे हैं कि वो अपना धर्म छोड़कर चीन में पूरी तरह से घुलमिल जाएं.
मानवाधिकार संस्था ह्यमन राइट्स वॉच ने जब अमेरिका के साथ मिलकर ये बातें सामने लाईं तो उइगरों के नाम पर यूनाइटेड नेशन्स तक में हल्ला मचा, लेकिन हुआ कुछ नहीं, सिवाय इसके कि पढ़ने-लिखने वाले ज्यादातर लोग चीन के उइगरों को जानने लगे. लेकिन इनके अलावा भी चीन में दूसरे धर्मों या कल्चर से जुड़े लोग रहे. ये सब तेजी से घटते जा रहे हैं.
कौन सी माइनोरिटीज रहती हैं?
चीन में सबसे ज्यादा आबादी हान चाइनीज की रही. आखिरी जनगणना में ये देश का 91 प्रतिशत से ज्यादा थे. उनके अलावा करीब 56 और ग्रुप हैं, जिनकी आबादी 105 मिलियन के आसपास रही. जुआंग, हुई, मियाओ, कजाक, बई, कोरियन, हानी, ली, उइगर और फालुन गोंग जैसी कम्युनिटीज यहां रहती हैं.
बहुत से ऐसे भी समुदाय है, जिनकी आबादी 5 हजार से भी कम है. चीन इन लोगों को एथनिक माइनोरिटी में नहीं गिनता. माना जा रहा है कि ये माइनोरिटीज तेजी से अपनी खासियत खो रही हैं. बोलचाल, रहन-सहन और खान-पान में जो भी बातें अलग थीं, वो अब घटती जा रही हैं क्योंकि चीन की सरकार ऐसा चाहती है.