ईरान की सड़कों पर ट्रैफिक रूल टूटने से शायद उतने हादसे नहीं होते, जितने औरतों के हिजाब के बगैर निकलने से!
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ईरान में जल्द ही गश्त-ए-इरशाद शुरू होने जा रहा है. ये कोई महीना या तीज-त्योहार नहीं, बल्कि पुलिसिया पेट्रोलिंग है. लंबे-चौड़े, ट्रेंड वर्दीवाले सड़कों पर इसलिए घूमेंगे ताकि औरतों के कपड़े काबू में रहें. खुले बालों और हवादार कपड़ों-वालियां पहले तो चेताई जाएंगी. फिर भी न मानें तो जेल में डाल दी जाएंगी. वहां के कट्टरपंथी लगातार इसकी जरूरत महसूस कर रहे थे.
सालभर पहले ईरान में महसा अमीनी नाम की एक युवती की पुलिस कस्टडी में मौत हो गई. 22 साल की महसा ने चोरी-डकैती नहीं की थी. उनका जुर्म इससे भी संगीन था. वे भूल गई थीं कि वे औरत हैं, जिसके हवा में लहराते बाल ईमानपसंद पुरुषों के लिए खतरा बन सकते हैं. हिजाब छोड़कर शहर में सैर-सपाटा करती महसा को गश्त-ए-इरशाद यानी नैतिकता का सबक पढ़ाने वाली एक टुकड़ी ने गिरफ्तार कर लिया. 3 दिन बाद उसकी मौत की खबर आई.
इसके बाद उस मुल्क में एकदम से कुछ बदला. नीम-बेहोशी में पड़ी लड़कियां, एक मुर्दा लड़की के झकझोरने से जाग पड़ीं.
जिन चेहरों को शौहरों और आइनों के अलावा कोई नहीं जानता था, वे सड़कों पर मुंह-उघाड़े घूमने लगीं. लंबे बालों को छोटी सोच की तरह कतरकर फेंकने लगीं.
ये अलग तरह की बगावत थी, जो कनाडियन जंगलों की आग से भी तेजी से भड़की. यहां तक कि सरकार को नैतिकता सिखाने वालों को सड़कों से हटाना पड़ गया. अब कई महीनों बाद मॉरेलिटी पुलिस एक बार फिर एक्टिव होने वाली है. कथित तौर पर ईरान के कट्टरपंथी लगातार इसकी जरूरत बता रहे थे.
स्त्री-शरीर को लेकर ये सनक न तो नई है, और ही ईरान-अफगानिस्तान तक सिमटी हुई है. 19वीं सदी में जब ब्रिटेन दुनिया के कई मुल्कों पर राज कर रहा था, वहां की औरतें शर्म के नए-नए सबक सीख रही थीं.
कुछ बड़े फैशन ब्रांड्स ने तय किया कि कुलीन ब्रिटिश महिलाओं की एड़ियां पुरुषों को उकसा सकती हैं. या फिर उनके खुले हुए कंधे, खुला न्यौता लग सकते हैं.