इजरायल को मान्यता देने वाला ईरान क्यों हो गया उसके खिलाफ? जानिए, दोस्ती के दुश्मनी में बदलने की कहानी
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ईरानी हमले के बाद से इजरायल और ईरान के बीच तनाव लगातार गहरा रहा है. यहां तक कि दोनों के मसले में अमेरिका से लेकर चीन तक सुलह की कोशिशें कर रहे हैं. वैसे एक समय पर ये देश दोस्त हुआ करते थे. यहां तक कि इजरायल को मान्यता देने वाले शुरुआती देशों में ईरान भी था. तब कैसे ये दोस्ती, दुश्मनी तक पहुंच गई?
आमतौर पर दो देशों के बीच तभी ठनती है, जब उनके बीच सीमा विवाद हो. वे बॉर्डर को लेकर भिड़ते रहते हैं. कई बार घुसपैठिए भी आग में घी डालने का काम करते हैं. हालांकि ईरान और इजरायल के तनाव में ये फैक्टर मिसिंग है. दोनों के बॉर्डर एक-दूसरे से नहीं सटते. न ही दोनों के बीच व्यापारिक या राजनैतिक रिश्ते हैं. इसके बाद भी उनके बीच शैडो वॉर चला आ रहा था. अब ये लड़ाई खुलकर दिख रही है. ये तब है जबकि एक समय पर दोनों मित्र राष्ट्र हुआ करते थे.
शुरू करते हैं मित्रता की कहानी से साल 1948 में निर्माण के बाद से इजरायल काफी उठापटक झेलता रहा. ज्यादातर देशों ने उसे मान्यता देने से इनकार कर दिया, खासकर मिडिल ईस्ट के मुस्लिम देशों ने. वहीं ईरान ने उसे मान्यता दे दी. उस दौर में पूरे वेस्ट एशिया में ईरान यहूदियों के लिए सबसे बड़ा ठिकाना था. नया-नया यहूदी देश इजरायल ईरान को हथियार और तकनीक देता और बदले में तेल लिया करता था. दोनों के बीच रिश्ते इतने अच्छे थे कि इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद ने ईरान के इंटेलिजेंस सावाक को खुफिया कामों की ट्रेनिंग तक दी.
इस्लामिक मुल्क ने बदली तस्वीर
दोनों के बीच दुश्मनी की नींव डली ईरान की इस्लामिक क्रांति की वजह से. साठ के दशक से ही ईरान के धार्मिक नेता अयातुल्ला रूहुल्लाह खुमैनी ईरान को मुस्लिम देश बनाने की बात करने लगे थे. तब इस देश पर राजा शाह रजा पहलवी का शासन था, जिनके अमेरिका और इजरायल से बढ़िया रिश्ते थे. खुमैनी इन दोनों ही देशों को शैतानी देश कहा करते और मुस्लिम राष्ट्र की मांग उठाते रहे.
धीरे-धीरे हवा खुमैनी के पक्ष में आ गई. क्रांति से पहले लाखों लोग शाह के खिलाफ प्रोटेस्ट करने लगे थे. हालात इतने बिगड़े कि राजा को देश छोड़कर भागना पड़ा, और साल 1979 में ईरान इस्लामिक देश घोषित हो गया. इसके बाद ही उसने अमेरिका समेत सहयोगी देश यानी इजरायल से खुलकर नफरत दिखानी शुरू कर दी.
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