
इंडिया एलायंस को खुश होना चाहिए कि मायावती उनके साथ नहीं आ रहीं, ये रहे 5 कारण
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उत्तर प्रदेश की राजनीति में अब तक बहुजन समाज पार्टी ने जिस किसी पार्टी से गठबंधन किया उसका बेड़ागर्क ही हुआ है. इंडिया एलायंस में आकर भी मायावती कुछ भला नहीं कर पातीं.
उत्तर प्रदेश की पूर्व सीएम और बीएसपी प्रमुख मायावती देश की अकेली शख्सियत वाली नेता हैं जो अपने सबसे बुरे दौर में भी उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में करीब 12 परसेंट वोट की मालकिन हैं.जाहिर है कि उत्तर भारत में वो किसी भी पार्टी के साथ खेला कर सकती हैं. उनके इस ऐलान के बाद कि वो किसी के साथ भी गठबंधन नहीं कर रही हैं इंडिया गठबंधन में चिंता की लकीरें हैं. हालांकि अभी इंडिया गठबंधन का भविष्य खुद भी अंधकारमय है पर एक उम्मीद है कि बहुत जल्दी सब कुछ सुलझा लिया जाएगा.सवाल यह है कि क्या मायावती के साथ न आने से इंडिया गठबंधन का उत्तर प्रदेश से सूपड़ा साफ हो जाएगा? राजनीतिक विश्वेषकों में इस बात को लेकर मतभेद है. कुछ का कहना है कि आमने सामने का दोतरफा मुकाबला होने पर एनडीए को नुकसान होगा, जबकि त्रिकोणीय मुकाबले में इंडिया गठबंधन का नुकसान होना तय है. फिर भी अगर गौर से देखा जाए कम से कम 5 कारण ऐसे हैं जिनसे लगता है कि मायावती का न होना इंडिया गठबंधन के लिए किसी न किस तरह फायदेमंद ही है.
1-मायावती के साथ जिसने भी गठबंधन किया फिर सत्ता में नहीं आया
सबसे बड़ी बात तो यह है कि उत्तर प्रदेश की राजनीतिक इतिहास पर एक नजर दौड़ाएं तो पाएंगे कि जिस किसी पार्टी ने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया उनका प्रदेश की राजनीति में ऐसी गिरावट हुई कि उसका सत्ता में लौटना मुश्किल हो गया. 1993 में मायावती और मुलायम सिंह यादव के बीच गठबंधन हुआ. दोनों ही पार्टियों को फायदा हुआ , मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने पर उसके बाद उनका राजनीतिक पतन हो गया. यूपी की राजनीति में कई बार राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा. 2003 में एक बार फिर मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने पर उसमें बीजेपी नेता विधानसभा अध्यक्ष केसरीनाथ त्रिपाठी की बड़ी भूमिका रही.
बीएसपी को तोड़कर किसी तरह मुख्यमंत्री बन सके थे मुलायम सिंह यादव. उसके बाद 2012 में अखिलेश यादव ने जब पार्टी का नेतृत्व किया तो समाजवादी पार्टी सत्ता में आ सकी. यही हाल कांग्रेस के साथ हुआ . नरसिम्हा राव ने बीएसपी के साथ गठबंधन किया और पार्टी की ऐसी मिटट्ी पलीद हुई कि आज तक सत्ता में नहीं आ सकी. अखिलेश यादव ने यही गलती 2019 में की उसके बाद कोई चुनाव जीत नहीं सके हैं. बीजेपी ने भी बीएसपी के साथ गठबंधन किया था करीब 2 दशक से अधिक समय के लिए यूपी की सत्ता से दूर हो गई. नरेंद्र मोदी के साथ जब बीजेपी ने नया अवतार लिया उसके बाद ही उत्तर प्रदेश में पार्टी फिर से अपने रंग में आ सकी है.
2-मायावती में वोट ट्रांसफर कराने की क्षमता अब नहीं रही
जो लोग ये समझते हैं कि मायावती के साथ गठबंधन करके इंडिया गठबंधन फायदे में रहता उन्हें उत्तर प्रदेश के पिछले कुछ चुनावों पर नजर डालनी चाहिए. मायावती भले ही चुनाव में गठबंधन करने से इंकार कर रही हों और पूर्व में किए गठबंधन में चुनावी नुकसान का हवाला दे रही हों पर सचाई यही है कि उन्होंने इसका खूब फायदा उठाया है. 1993 में बसपा को को सपा से गठबंधन की बदौलत पार्टी की सीट संख्या 12 सीटों से 67 पर पहुंच गई. 1996 में बसपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था, सीट नहीं बढ़ी, लेकिन वोट प्रतिशत बढ़ गया. ऐसे ही 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने सपा के साथ मिलकर लड़ा था और 10 सीटें जीतने में कामयाब रही जबकि समाजवादी पार्टी केवल 5 सीट ही जीत सकी. जब कि बहुजन समाज पार्टी 2014 में अकेले चुनाव लड़कर एक सीट नहीं जीत सकी थी. 2022 में यूपी विधानसभा अकेले लड़कर बीएसपी केवल एक सीट पर सिमट गई.मतलब साफ है मायावती वोट ट्रांसफर या तो करा नहीं पाती हैं या साथी दलों को धोखा दे देती हैं. दोनों परिस्थितियां सहयोगी दलों के खतरनाक हैं.

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