'अदालतें तो 1949 से थीं...', राम मंदिर का क्रेडिट मोदी-योगी को क्यों? के सवाल पर बोले रामलला के मुख्य पुजारी
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रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने आज तक से विशेष बातचीत में कहा कि उस समय बहुत कष्ट होता था जब बरसात के छींटे भगवान के आसन तक आते थे. प्रभु को सप्ताह में 7 वस्त्र पहनाए जाते थे. एक बार रामनवमी को जो वस्त्र बनते थे, वही सालभर चलते थे. जबकि उन्हें रोज नए वस्त्र पहनाए जाने चाहिए. उनके भोग, प्रसाद और अन्य खर्चों के लिए सिर्फ 20 हजार रुपए सालाना मिलते थे.
अयोध्या के नवनिर्मित भव्य मंदिर में 22 जनवरी 2024 को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है. उससे पहले आज तक ने प्रभु राम के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास से बातचीत की. उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़ी अपनी यादों को साझा किया. सत्येंद्र दास ने कहा कि इस घड़ी की वर्षों से प्रतीक्षा थी. प्राण प्रतिष्ठा का दृश्य अपने आप में अद्भुत और विलक्षण होगा. जिस दिन प्राण प्रतिष्ठा होगी और रामलला अपने भव्य और दिव्य मंदिर में विराजेंगे वह एक युग के समान है. ऐसा लगता है कि जितनी चुनौतियां और परेशानियां रहीं वे सब समाप्त हुईं, अब युग बदल गया, अब राम का युग आया है.
राम मंदिर का श्रेय किसे जाता है? इस पर रामलला के मुख्य पुजारी ने कहा, 'अदालतें आज से नहीं हैं, 1949 के पहले से हैं. इतने वर्षों में राम मंदिर को लेकर फैसला क्यों नहीं आया? कांग्रेस की सरकार रही, और सरकारें आईं तब यह क्यों नहीं हुआ? भाजपा की सरकार आई तो राम मंदिर की सुनवाई टालने की साजिश किसकी थी? मैं कहूंगा कि जिनकी राम में आस्था है, जिन पर भगवान की कृपा है वे सत्ता में हैं और जो मन व कर्म से विरोधी थे वे बाहर हैं. देश और उत्तर प्रदेश में कई पार्टियों की सत्ता आई, लेकिन किसी सरकार की दृष्ठि अयोध्या पर नहीं आई. बीजेपी जबसे सरकार में आई, विशेषकर प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अयोध्या पर दृष्टि बनी हुई है. उनकी वजह से आज अयोध्या बहुत तेजी से विकसित हो रही है.'
प्राण प्रतिष्ठा का अर्थ क्या होता है? इस बारे में आचार्य सत्येंद्र दास ने कहा, 'किसी निर्जीव को सजीव बना देना प्राण प्रतिष्ठा है. वह मूर्ति तब तक निर्जीव है, जब तक शास्त्रों में वर्णित मंत्रों को अभिमंत्रित करके उसकी प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जाती'. प्राण प्रतिष्ठा के लिए 86 सेकंड के मुहूर्त के बारे में महंत सत्येंद्र दास ने कहा, 'इतने ही समय में उन मंत्रों का उच्चारण हो जाता है, जिनके जाप की जरूरत प्राण प्रतिष्ठा के लिए होती है. इसीलिए 86 सेकंड का शुभ मुहूर्त रखा गया है. यह पूजा सिर्फ 22 जनवरी की नहीं है, बल्कि उसके पहले ही शुरू हो जाएगी. करीब सप्ताहभर के अनुष्ठान में कई देवी-देवताओं का आह्वान किया जाएगा'.
'रामलला की कृपा से वो दर्दनाक 28 वर्ष भी बीत गए' आचार्य सत्येंद्र दास ने उस समय को भी याद किया जब रामलला को वर्षों तक तिरपाल के नीचे रहना पड़ा. उन्होंने आज तक से विशेष बातचीत में कहा, 'वह बहुत ही दर्दनाक समय था. ये समझिए की भगवान रामलला की कृपा से 28 वर्ष बीत गए और पता नहीं चला. जब प्रभु राम वनवास के लिए जाने लगे तो माता सीता ने हठ किया की मैं भी साथ चलूंगी. तब भगवान ने तमाम तर्क रखे कि क्यों उनका जाना ठीक नहीं है. तब सीता माता ने कहा कि जैसे बिना जल के गंगा और सरयू का अर्थ नहीं रह जाता, वैसे ही साथ में पति नहीं है तो नारी भी निर्जीव है'.
आचार्य सत्येंद्र दास ने के मुताबिक, 'माता सीता ने प्रभु राम से कहा, आप वन चले जाएंगे तो मैं भी निर्जीव हो जाऊंगी, इसलिए वन में जो भी कष्ट होंगे मैं सब सह लूंगी, लेकिन आपको वियोग नहीं सह पाऊंगी. प्रभु राम ने उन्हें समझाने की कोशिश की कि 14 वर्ष बहुत लंबा समय नहीं है, बीत जाएगा. लेकिन वह नहीं मानीं और साथ गईं. वैसे ही जो भी समस्याएं आईं, यह धैर्य रहा कि ये भी समय बीत जाएगा और अच्छा समय जरूर आएगा. तिरपाल हटेगा, भव्य मंदिर बनेगा. क्योंकि भगवान की इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिलता. आज वह समय आ गया'.
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