
IPC Section 88: किसी के फायदे के लिए किए गए काम को बताती है आईपीसी की धारा 88
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आईपीसी (IPC) की धारा 88 (Section 88) में बताया गया है कि किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सम्मति से सद्भावपूर्वक किया गया कार्य जिससे मृत्यु कारित करने का आशय नहीं है. आइए जानते हैं कि आईपीसी की धारा 88 इस बारे में क्या कहती है?
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धाराए ऐसे कानूनी प्रावधान (Legal provision) परिभाषित करती हैं, जो अदालत (Court), पुलिस (Police) और अन्य कानूनी एजेंसियां (Legal agencies) अपनी कार्य प्रणाली में इस्तेमाल करती हैं. ऐसे ही आईपीसी (IPC) की धारा 88 (Section 88) में बताया गया है कि किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सम्मति से सद्भावपूर्वक किया गया कार्य जिससे मृत्यु कारित करने का आशय नहीं है. आइए जानते हैं कि आईपीसी की धारा 88 इस बारे में क्या कहती है?
आईपीसी की धारा 88 (Indian Penal Code Section 88) भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 88 (Section 88) के मुताबिक कोई बात, जो मृत्यु कारित करने के आशय (Intent to cause death) से न की गई हो, किसी ऐसी अपहानि के कारण अपराध (Offenses) नहीं है जो उस बात से किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसके फायदे के लिए वह बात सद्भावपूर्वक (In good faith) की जाए और जिसने उस अपहानि (Harm) को सहने, या उस अपहानि की जोखिम उठाने (Risk taking) के लिए चाहे अभिव्यक्त, चाहे विवक्षित सम्मति (Implied consent) दे दी हो, कारित हो या कारित करने का कर्ता का आशय हो या कारित होने की संभाव्यता (feasibility) कर्ता को ज्ञात है.
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क्या होती है आईपीसी (IPC) भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक (Citizen) द्वारा किये गये कुछ अपराधों (certain offenses) की परिभाषा (Definition) और दंड (Punishment) का प्रावधान (Provision) करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना (Indian Army) पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी (IPC) जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
अंग्रेजों ने लागू की थी IPC ब्रिटिश कालीन भारत (British India) के पहले कानून आयोग (law commission) की सिफारिश (Recommendation) पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले (Lord Macaulay) ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.

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