
IPC Section 102: शरीर की निजी सुरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बने रहना बताती है धारा 102
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आईपीसी की धारा 102 (IPC Section 102) में शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बने रहना बताया गया है. तो चलिए जान लेते हैं कि आईपीसी की धारा 102 इसे किस प्रकार परिभाषित करती है?
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) में अपराध और उनकी सजा के प्रावधान तो हैं ही, साथ ही आत्मरक्षा (Self defense) के प्रावधान भी परिभाषित (Define) किए गए हैं. जो धारा 96 (Sction 96) से लेकर धारा 106 (Section 106) तक मिलते हैं. ऐसे ही आईपीसी की धारा 102 (IPC Section 102) में शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बने रहना बताया गया है. तो चलिए जान लेते हैं कि आईपीसी की धारा 102 इसे किस प्रकार परिभाषित करती है?
आईपीसी की धारा 102 (Indian Penal Code Section 102) भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 102 (Section 102) में शरीर की निजी सुरक्षा के अधिकार (Right to private security) का प्रारंभ होना और बने रहना परिभाषित किया गया है. IPC की धारा 102 के मुताबिक, शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा (Private defence) का अधिकार उसी क्षण प्रारंभ (Start) हो जाता है, जब अपराध (Offence) करने के प्रयत्न या धमकी (Threat) से शरीर के संकट की युक्तियुक्त आशंका (Reasonable apprehension of distress) पैदा होती है, चाहे वह अपराध न किया गया हो, और वह तब तक बना रहता है जब तक शरीर के संकट की ऐसी आशंका बनी रहती है.
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क्या होती है आईपीसी (IPC) भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक (Citizen) द्वारा किये गये कुछ अपराधों (certain offenses) की परिभाषा (Definition) और दंड (Punishment) का प्रावधान (Provision) करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना (Indian Army) पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी (IPC) जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
अंग्रेजों ने लागू की थी IPC ब्रिटिश कालीन भारत (British India) के पहले कानून आयोग (law commission) की सिफारिश (Recommendation) पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले (Lord Macaulay) ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.

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