E-CENSUS खोलेगी NRC के रास्ते? जन्म से लेकर मृत्यु तक का डाटा होगा केंद्र सरकार के पास
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E-census in India: साल 2019 में देश में CAA के साथ NRC का भी विरोध हो रहा था. कई संगठनों का तर्क था कि जो अपनी नागरिकता नहीं साबित कर पाएंगे जो अपने ही देश में बेघर हो जाएंगे. डिजिटल जनगणना में भी सरकार ने बोगस नाम को जनगणना रजिस्टर में जोड़ने से रोकने के लिए कई चेक और बैलेंस लेकर आ रही है.
गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को असम में घोषणा की है कि अगली जनगणना इलेक्ट्रानिक (e-census) तरीके से की जाएगी जो 100 फीसदी सही होगी. गृह मंत्री ने दावा किया है कि जनगणना के दौरान एक जनगणना रजिस्टर तैयार किया जाएगा. इस रजिस्टर में एक शिशु के जन्म होते ही उसका जन्म तिथि रिकॉर्ड दर्ज किया जाएगा. 18 साल बाद जब ये बच्चा बालिग हो जाएगा तो इसका नाम मतदाता सूची में जोड़ दिया जाएगा. इस व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसका नाम मतदाता सूची से हटा दिया जाएगा.
गृह मंत्री अमित शाह की घोषणा के बरक्श NRC की भी चर्चा जरूरी है. जिसे लेकर देश में विवाद चल रहा है. सवाल उठता है कि क्या ई जनगणना के रास्ते सरकार NRC का दरवाजा खोल रही है. इस पर चर्चा से पहले ये जान लेना जरूरी है कि NRC है क्या?
क्या है NRC
दरअसल NRC यानी कि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन एक रजिस्टर है. सरकार की योजना है कि इस रजिस्टर में भारत में रह रहे सभी वैध नागरिकों का रिकॉर्ड रखा जाएगा. NRC अभी सिर्फ असम में लागू है. लेकिन गृह मंत्री अमित शाह कह चुके हैं कि NRC को पूरे देश में लागू किया जाएगा. ध्यान रहे कि NRC में सिर्फ वैध नागरिकों का ही रिकॉर्ड रखा जाएगा.
NRC का विरोध क्यों?
2019 में भारत में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के साथ NRC का भी मुस्लिम संगठनों ने विरोध किया था. NRC में अपनी नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी व्यक्तियों पर होगी. मुस्लिम संगठनों समेत कई गैर सरकारी संगठनों का तर्क है कि अगर कोई व्यक्ति दस्तावेजों के अभाव में अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाएगा तो ऐसी हालत में वो भारत का नागरिक ही नहीं रह पाएगा. इनका कहना है कि देश में करोड़ों ऐसे गरीब-घुमंतु लोग हैं जिनके पास अपनी नागरिकता साबित करने के लिए वैध कागज नहीं है. NRC अगर लागू होता है तो वे इसके शिकार हो जाएंगे.
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