
Crime Katha: बिहार के मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की हत्या से दहल गया था पूरा देश, सरेआम इस डॉन ने किया था मर्डर
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पटना के IGIMS अस्पताल में बिहार के मंत्री बृज बिहारी प्रसाद को सरेआम गोलियों से भून दिया गया था. ये हत्या की ऐसी वारदात थी, जिसने बिहार में जंगलराज की परिभाषा को सच कर दिया था. ये कत्ल शुक्ला बंधुओं की मौत का बदला था, जिसे यूपी के कुख्यात डॉन ने अंजाम दिया था. पढ़ें पूरी कहानी,
Crime Katha of Bihar: बिहार के सियासी गलियारों में कई ऐसी खौफनाक कहानियां दफ्न हैं, जिन्हें सुनकर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं. 27 साल पहले भी ऐसी ही एक कहानी खून से लिखी गई थी, जब एक सरकारी अस्पताल के परिसर में बिहार के एक कैबिनेट मंत्री बृज बिहारी प्रसाद को सरेआम गोलियों से छलनी कर दिया गया था. ताकतवर मंत्री की हत्या महज सत्ता, बदले और बाहुबल के लिए नहीं की गई थी, बल्कि इस हत्याकांड ने पूरे बिहार को खौफजदा कर दिया था. यही वो हत्याकांड था, जिसके बाद बिहार की राजनीति में 'जंगलराज' शब्द का इस्तेमाल खूब हुआ. 'बिहार की क्राइम कथा' में पेश है उसी सबसे चर्चित हत्याकांड की पूरी कहानी.
कौन थे बृज बिहारी प्रसाद? बृज बिहारी प्रसाद का जन्म 20 जुलाई 1949 को बिहार के पूर्वी चंपारण जिले के आदापुर में एक साधारण परिवार में हुआ था. बचपन से ही वे मेहनती और महत्वाकांक्षी थे. लेकिन 1990 के दशक में बिहार की राजनीति में उनका एंट्री एक तूफान की तरह हुई. जनता दल से जुड़कर वे आदापुर विधानसभा सीट से पहली बार विधायक बने और लालू प्रसाद यादव के करीबी सहयोगी के रूप में उभरे. उनकी छवि एक मजबूत ओबीसी नेता की थी, जो पिछड़े वर्गों के हितों की रक्षा करते थे. वे मसल-पावर और मनी-पावर से वोटिंग और चुनाव को प्रभावित करने में माहिर थे.
बिहार के मुजफ्फरपुर से चंपारण तक उनका प्रभाव था. उनकी पत्नी रमा देवी भी राजनीति में सक्रिय रहीं, जो बाद में भाजपा से सांसद भी बनीं. बृज बिहारी की राजनीतिक यात्रा जातीय संघर्षों से भरी थी, वे ऊपरी जातियों के बाहुबलियों को चुनौती देते थे. 1990-95 तक वे ग्रामीण विकास मंत्रालय के उप-मंत्री रहे. लेकिन उनकी लोकप्रियता गरीबों और वंचितों में इतनी थी कि वे 'दिन-दुखियों की आवाज' कहलाते थे. इसी महत्वाकांक्षा ने उन्हें दुश्मनों की लिस्ट में लाकर खड़ा कर दिया था.
राजनीतिक में तरक्की साल 1995 में राबड़ी देवी सरकार में बृज बिहारी प्रसाद को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री बनाया गया, जो उनकी राजनीतिक यात्रा का स्वर्णिम दौर था. इससे पहले वे ऊर्जा मंत्री भी रह चुके थे. लालू यादव के दाहिने हाथ के रूप में वे पार्टी के नंबर दो नेता माने जाते थे. आदापुर से चार बार विधायक रहने के बाद उनका प्रभाव पूर्वांचल से मुजफ्फरपुर तक फैल गया. वे पिछड़े जातियों के उम्मीदवारों को ऊपरी जाति के बाहुबलियों के खिलाफ जितवाते थे, जैसे उन्होंने बाहुबली मुन्ना शुक्ला को हराकर केदार गुप्ता को जितवाया था.
1995 के विधानसभा चुनावों में उनकी रणनीति से कई सीटें जनता दल के पक्ष में गईं. लेकिन यह दौर बिहार में जातीय गैंगवार का भी था. बृज बिहारी पर कई आपराधिक आरोप लगे, लेकिन वे हमेशा बच निकले. उनकी पत्नी रमा देवी ने 1995 में मोतिहारी लोकसभा सीट जीती, जो उनके प्रभाव का सबूत था. हालांकि उनकी सफलता उनके दुश्मनों की तादाद भी बढ़ा रही थी. बिहार की राजनीति में उनका नाम मंडल आंदोलन की चुनौती का प्रतीक था.
छोटन शुक्ला के साथ दुश्मनी की शुरुआत बिहार में 90 का दशक बाहुबलियों का था, जहां जातीय गुटों में बंटे अपराधी वर्चस्व की जंग लड़ रहे थे. बृज बिहारी प्रसाद और छोटन शुक्ला (भूमिहार समुदाय के गैंगस्टर) के बीच दुश्मनी 1994 से शुरू हुई. छोटन शुक्ला आनंद मोहन सिंह की बिहार पीपुल्स पार्टी का चेहरा था और मुजफ्फरपुर अपराध का गढ़ था. बृज बिहारी ने अपने प्रभाव से छोटन को चुनौती दी.

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