
BJP की सियासी 'फिल्म' के लीड 'एक्टर' कैसे बन गए चिराग पासवान, पढ़ें वो किस्सा जब पिता को NDA में जाने के लिए मनाया
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साल 2014 में चिराग ने राजनीति में डेब्यू किया. एक्टर से नेता बने चिराग की पहली फिल्म ही फ्लॉप होने के बाद उन्होंने अब फुल टाइम राजनीति का मन बना लिया था. दरअसल उस वक्त तक रामविलास पासवान की लोजपा कांग्रेस वाले UPA गठबंधन का हिस्सा हुआ करती थी. पढ़ें पूरा किस्सा...
खुद को मोदी का हनुमान बताने वाले चिराग पासवान इन दिनों बिहार की राजनीति में लाइमलाइट में हैं. वजह है लोकसभा चुनाव 2024. बीते दिन यानी 18 मार्च को भाजपा मुख्यालय से विनोद तावड़े ने बिहार के NDA गठबंधन में सीट शेयरिंग का अपना फॉर्मूला सार्वजनिक किया. इसमें भाजपा को 17 सीटें, जदयू को 16 सीटें तो चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोजपा (रामविलास) के खाते में 5 सीटें गईं. वहीं उपेंद्र कुशवाह और जीतनराम मांझी की पार्टी को एक-एक सीट दी गई. इस ऐलान के साथ ही साफ हो गया कि भाजपा अब चिराग के चाचा पशुपति पारस को एक भी टिकट नहीं दे रही है. इसके बाद आज यानी 19 मार्च को पशुपति पारस ने कैबिनेट से इस्तीफा भी दे दिया.
इस तमाम रस्साकशी से यह तो स्पष्ट है कि बिहार में भाजपा की सियासी फिल्म के लीड एक्टर अब भी चिराग पासवान ही हैं. भाजपा की चिराग पर भरोसे जताने की कई वजहें हैं. इस भरोसे की शुरुआत जानने से पहले एक नजर उस दौर पर डालते हैं जब बिहार में लोजपा के दो टुकड़े हुए थे. यानी साल 2020 में जब चिराग के पिता रामविलास पासवान का निधन हुआ. इसके बाद चिराग के चाचा पशुपति पारस ने उनकी राजनीतिक पार्टी पर दावा ठोका तो चिराग पासवान ने भी कुछ दिनों में नई पार्टी बना ली.
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मोदी के 'हनुमान' बने चिराग
भाजपा ने भी तब असली लोजपा यानी पशुपति पारस वाली पार्टी को ही समर्थन देना जारी रखा. इससे इतर चिराग पासवान की नई पार्टी NDA का हिस्सा न होते हुए भी भाजपा के लिए अपना समर्थन देती रही. जब एलजेपी में टूट पड़ी तो चिराग अलग-थलग पड़ गए थे. पशुपति पारस को दलित वोटों से उम्मीद थी. लेकिन चिराग ने फिर जन आशीर्वाद यात्रा निकाली. उनकी यात्रा को अच्छा समर्थन मिला था. अपनी इस यात्रा के दौरान चिराग ने खुद को अपने पिता रामविलास पासवान का असली राजनीतिक उत्तराधिकारी बताया. जबकि, पार्टी तोड़ने वालों को 'विश्वासघाती' कहा. इसके साथ ही चिराग पासवान ने एक अनोखा काम किया कि भाजपा के खिलाफ उन्होंने कभी कुछ नहीं बोला. चिराग पासवान NDA से बाहर होते हुए भी खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 'हनुमान' बताते रहे. यानी मोदी की तुलना प्रभु राम से करते हुए चिराग पासवान ने खुद को उनका सेवक 'हनुमान' बताया.
इसके बाद चिराग पासवान दोबारा एनडीए में आ गए और आते ही उन्होंने सबसे पहले हाजीपुर सीट पर अपना दावा ठोका. लेकिन यहां गौर करने वाली बात यह है कि भाजपा ने इस बार पशुपति पारस को दरकिनार कर चिराग पासवान पर भरोसा जताया.

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