
9 साल पहले फवाद खान ने बदली थी गे किरदारों की तस्वीर, कई एक्टर्स रिजेक्ट कर चुके थे 'कपूर एंड सन्स'
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आलिया भट्ट के चुलबुलेपन, सिद्धार्थ मल्होत्रा के कन्फ्यूज छोटे भाई वाले कैरेक्टर और खट्टी-मीठी पारिवारिक नोंकझोंक से हटकर 'कपूर एंड सन्स' एक और मामले में बहुत खास थी. फिल्म में फवाद खान ने एक गे किरदार निभाया था. मगर जिस तरह उन्होंने ये किरदार निभाया था, उसने अपने आप में बॉलीवुड में एक बड़ी चीज बदली थी.
कोविड लॉकडाउन के बीच फंसे लगभग दो साल का वक्त दिमागी कैलेंडर से इस कदर गायब हुआ है कि इसकी वजह से अक्सर बीते सालों का हिसाब गड़बड़ लगने लगता है. जैसे आज फवाद खान, आलिया भट्ट और सिद्धार्थ मल्होत्रा की फिल्म 'कपूर एंड सन्स' को रिलीज हुए 9 साल पूरे हो चुके हैं. क्या आप इस बात पर यकीन कर सकते हैं?
ऐसा लगता है जैसे अभी कुछ ही दिन पहले तो 'कर गयी चुल' पर डांस करते आलिया, फवाद और सिद्धार्थ को स्क्रीन पर देखा था. या फिर ऋषि कपूर को दादा जी के अवतार में देखकर थिएटर्स में अभी कुछ ही दिन पहले तो हंसी आई थी. एक और यकीन ना करने लायक फैक्ट ये भी है कि ऋषि साहब को हमारे बीच से गए भी 5 साल बीत चुके हैं.
भले ही 'कपूर एंड सन्स' को रिलीज हुए इतना लंबा अरसा बीत चुका हो, लेकिन शकुन बत्रा की ये फिल्म आज भी उतनी ही फ्रेश लगती है जितनी थिएटर्स में पहले दिन लग रही थी. आलिया भट्ट के चुलबुलेपन, सिद्धार्थ मल्होत्रा के कन्फ्यूज छोटे भाई वाले कैरेक्टर और खट्टी-मीठी पारिवारिक नोंकझोंक से हटकर 'कपूर एंड सन्स' एक और मामले में बहुत खास थी. फिल्म में फवाद खान ने एक गे किरदार निभाया था. मगर जिस तरह उन्होंने ये किरदार निभाया था, उसने अपने आप में बॉलीवुड में एक बड़ी चीज बदली थी.
कैसे अलग था फवाद खान का गे किरदार? 'कपूर एंड सन्स' वो पहली फिल्म बॉलीवुड फिल्म नहीं थी जिसमें गे किरदार नजर आया था. मगर इस मामले में ये फिल्म यकीनन पहली पॉपुलर मेनस्ट्रीम बॉलीवुड फिल्म बनी, जिसने स्क्रीन पर गे किरदारों को दिखाने का नजरिया बदल दिया.
इससे पहले बॉलीवुड की पॉपुलर फिल्मों में गे किरदारों को हमेशा एक ऐसी नजर से दिखाया जाता था, जिसका उद्देश्य पर्दे पर हंसी या शॉक क्रिएट करना होता था. जैसे 'दोस्ताना' (2008) में अभिषेक बच्चन का किरदार जिस तरह गे होने की एक्टिंग करता है, वो गे किरदारों को दिखाने के लिए बॉलीवुड की एक तयशुदा स्क्रीन लैंग्वेज बन चुका था.
90s और शुरूआती 2000s से ही कई फिल्मों में आपको पॉपुलर बॉलीवुड फिल्मों में इस तरह के किरदार मिल जाएंगे जिन्हें कहानी में गे बताया गया था. मगर इनकी बॉडी लैंग्वेज में हाथों, चेहरे और कमर के ऐसे जेस्चर शामिल थे जिन्हें सिनेमा की भाषा में महिलाओं के साथ ही जोड़कर दिखाया जाता था. जबकि इस तरह के जेस्चर किसी भी पैमाने पर खुद महिलाओं के लिए भी सम्मानजनक नहीं थे. शायद उस वक्त फिल्ममेकर्स की जेंडर की समझ ही यही थी कि उनके हिसाब से किसी व्यक्ति की सेक्सुअल इंटरेस्ट या उसकी सेक्सुअलिटी, उसके शारीरिक स्ट्रक्चर और बॉडी लैंग्वेज को ही बदल देती है.

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