
13% वोट, 3 फोकस्ड लोकल पार्टियां और नेशनल दलों का एजेंडा... फिर भी आंबेडकर के महाराष्ट्र में दलित पॉलिटिक्स हाशिए पर क्यों है?
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महाराष्ट्र में करीब 13 फीसदी दलित हैं लेकिन प्रदेश में दलित पॉलिटिक्स हाशिए पर है. ऐसा तब है जब स्थानीय स्तर पर तीन मजबूत पार्टियां हैं और बसपा जैसी पार्टियां भी सूबे की सियासत में एक्टिव हैं. क्यों?
महाराष्ट्र के चुनाव में सत्ताधारी महायुति और विपक्षी महा विकास आघाड़ी (एमवीए), दोनों ही गठबंधनों का फोकस संविधान को लेकर नैरेटिव पर है. महायुति के नेता लोकसभा चुनाव में अपने खिलाफ संविधान बदलने का गलत नैरेटिव गढ़ने का आरोप लगाते हुए एमवीए को घेर रहे हैं. वहीं, एमवीए के नेता संविधान और आरक्षण के साथ ही धारावी जैसी परियोजनाओं का जिक्र कर महाराष्ट्र की जनता को भावनात्मक रूप से जोड़ने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं. इन सबके बीच संविधान निर्माता बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर की भी बात हो रही है लेकिन दलित पॉलिटिक्स और इससे जुड़ी पार्टियां हाशिए पर ही दिखाई दे रही हैं.
डॉक्टर आंबेडकर के परिवार से ही आने वाले प्रकाश आंबेडकर और उनकी पार्टी वंचित बहुजन अघाड़ (वीबीए) विपक्षी इंडिया ब्लॉक में जगह नहीं बना पाई. रामदास अठावले की अगुवाई वाली रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले), भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में केवल दो ही सीटें हासिल कर सकी. हितेंद्र ठाकुर की अगुवाई वाली बहुजन विकास अघाड़ी (वीबीए) भी वसई-विरार क्षेत्र की कुछ सीटों तक ही सिमटकर रह गई है.
यह तस्वीर तब है जब डॉक्टर आंबेडकर के महाराष्ट्र में करीब 13 फीसदी दलित आबादी है और स्थानीय स्तर पर कई दलित पार्टियां हैं. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और एडवोकेट चंद्रशेखर की अगुवाई वाली आजाद समाज पार्टी जैसे दलित राजनीति से जुड़े यूपी के दल भी दांव आजमा रहे हैं. सवाल है कि आखिर आंबेडकर के महाराष्ट्र में दलित पॉलिटिक्स हाशिए पर क्यों हैं? इसे चार पॉइंट में समझा जा सकता है.
1- आबादी
महाराष्ट्र में दलित पॉलिटिक्स के हाशिए पर होने के पीछे कई फैक्टर्स हैं. इनमें से फैक्टर दलित आबादी भी है. महाराष्ट्र में दलितों की आबादी 13 फीसदी है. सूबे में दलितों की आबादी डबल डिजिट में तो है लेकिन यह यूपी और बिहार जैसे राज्यों जितनी प्रभावी नहीं. यूपी की बात करें तो यहां कुल आबादी में करीब 21 फीसदी दलित आबादी है. वहीं, बिहार में दलित आबादी करीब 19 फीसदी है.
2- एकता का अभाव

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