
संघ के 100 साल: RSS पर बैन, पटेल का गुरुजी को कांग्रेस में विलय का ऑफर और प्रतिबंध हटने की कहानी
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महात्मा गांधी की हत्या के बाद पहले तो नेहरू सरकार ने संघ को प्रतिबंधित कर दिया था. गुरु गोलवलकर जेल में थे. लेकिन जब वह बाहर आए तो नेहरू को दो बार चिट्ठियां लिखीं और RSS से बैन हटाने की मांग की. इस दौरान सरदार पटेल ने गोलवलकर को ऑफर दिया कि क्यों न संघ का विलय कांग्रेस में कर दिया जाए. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना की कहानी.
गुरु गोलवलकर से जब खुद सरकार ने गांधी हत्या के आरोपों वाली धाराएं हटा लीं, और नेशनल सिक्योरिटी एक्ट की अवधि भी पूरी हो गई, तो उन्हें नागपुर जेल से रिहा कर दिया गया. लेकिन ये रिहाई सशर्त थी. उन पर तमाम प्रतिबंध लगा दिए गए थे, जैसे नागपुर से बाहर नहीं जाएंगे, किसी सार्वजनिक कार्यक्रम को सम्बोधित नहीं करेंगे, मीडिया से बात नहीं करेंगे और ना ही अखबारों में कुछ लिखेंगे, संघ पर पाबंदी थी ही, सो शाखाओं में जाने का तो सवाल ही नहीं था. कुल मिलाकर जेल का दायरा बढ़ाकर पूरे नागपुर शहर जितना कर दिया गया था. हां पत्र लिखने को लेकर सरकार पाबंदी लगाना भूल गई थी, सो गोलवलकर ने प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को संघ से प्रतिबंध हटाने की मांग को लेकर पत्र लिखे. पहले 11 अगस्त को, फिर जवाब ना आने पर 24 सितम्बर को. इस बार जवाब मिला, जिसमें नेहरू ने संगठन पर साम्प्रदायिक होने के आरोप लगाए तो पटेल ने तारीफ करने के साथ कुछ हिदायतें भी दीं.
पटेल ने तो संघ को कांग्रेस में विलय करने तक की सलाह दे डाली. लेकिन दोनों ने ही प्रतिबंध हटाने की मांग पर कुछ नहीं लिखा. उधर देशभर में कांग्रेस सरकार का विरोध शुरू हो गया था, कि जब कोई सुबूत मिले ही नहीं तो प्रतिबंध क्यों लगा रखा है, देश उनको काले अंग्रेज तक सम्बोधित करने लगा था. विरोध असर लाया और अचानक 13 अक्टूबर को गुरु गोलवलकर पर लगे सारे प्रतिबंध हटा लिए गए, उन्होंने फौरन दिल्ली का रुख किया. अजब संयोग था, पिछली 17 अक्तूबर को वह श्रीनगर पहुंचे थे, पटेल की पहल पर राजा हरि सिंह भारत में विलय के लिए राजी करने के लिए और इस बार वो पटेल नेहरू से अपने संगठन पर प्रतिबंध हटाने की मांग के साथ दिल्ली पहुंचे थे, तारीख वही थी 17 अक्तूबर. दिल्ली पहुंचते ही उसी दिन उनकी सरदार पटेल संग बैठक हुई, 23 को दोबारा हुई, सरदार चाहते थे कि संघ कांग्रेस में विलय कर ले, गुरुजी ने विनम्रता से प्रस्ताव ठुकरा दिया. उनका यही कहना था कि जिन आरोपों के चलते संघ पर प्रतिबंध लगाया गया. वो झूठे साबित हुए तो प्रतिबंध का क्या मतलब है. लेकिन सरकार मानने को तैयार नहीं थी, इधर देश भर से स्वयंसेवक दिल्ली में डेरा डालने लगे कि गुरु गोलवलकर से मिल सकें.
पटेल के कहने के बावजूद प्रतिबंध हटने तक गोलवलकर दिल्ली से हटने को तैयार नहीं थे. 2 नवम्बर को गुरु गोलवलकर ने बड़ी प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर संघ के ऊपर लगे एक एक आरोप का विस्तार से जवाब दिया. पटेल नेहरू के साथ और पत्राचार हुआ, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला, 12 को तो सरकार ने छुपी धमकी दे दी कि अगर संघ प्रमुख नागपुर नहीं लौटे तो उनको गिरफ्तार भी किया जा सकता है अगले ही दिन ये कर भी दिखाया, 13 अक्टूबर को उन्हें दिल्ली के संघचालक लाला हंसराज के घर से पुलिस ने उठाया और नागपुर जेल में छोड़ आई. यानी लड़ाई जहां से शुरू हुई थी, फिर वहीं आ गई, जेल में. गुरु गोलवलकर ने जेल से भेजे संदेश में इसे ‘अधर्म के खिलाफ धर्म की लड़ाई’ बताया और भैयाजी दाणी ने 9 दिसम्बर से शाखाओं में सत्याग्रह की शुरूआत कर दी, प्रतिबंध अभी हटा नहीं था, ऐसे में गिरफ्तारियां शुरू हो गईं. भिषिकर ने ‘श्री गुरुजी’ में लिखा है कि देश भर में 2 लाख स्वयंसेवकों ने सत्याग्रह में भाग लिया, जिनमें से 77 हजार 90 स्वयंसेवकों को सरकारों ने गिरफ्तार कर लिया. हालांकि कई जेलों में इतनी कैदी क्षमता ही नहीं थी, वो परेशान होने लगे थे. केन्द्र में बार बार ये संदेश अलग-अलग राज्य सरकारों को जा रहे थे कि लोग ज्यादा हो गए हैं, जेलें भर गई हैं.
RSS के सौ साल से जुड़ी इस विशेष सीरीज की हर कहानी
के आर मलकानी अपनी किताब ‘द आरएसएस स्टोरी’ में 60 हजार से अधिक गिरफ्तारियां बताते हैं और दावा करते हैं कि किसी भी सत्याग्रह में अब तक कि ये सबसे ज्यादा गिरफ्तारियां हैं. ना इतने लोग असहयोग आंदोलन में गिरफ्तार हुए, ना ही सविनय अवज्ञा आंदोलन में और ना ही 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में. ऐसे में ‘केसरी’ के सम्पादक जीवी केतकर, लिबरल पार्टी के टी आर वेकंटरमण शास्त्री आदि ने मध्यस्थता के प्रयास शुरू किए. इसी के चलते 22 जनवरी 1949 को सत्याग्रह वापस भी ले लिया गया. लेकिन सरकार ने फिर टालने की कोशिश की, गोलवलकर को सिवनी से बैतूल जेल भेज दिया गया. इधर धीरे धीरे राष्ट्रीय मीडिया के साथ साथ इंटरनेशनल मीडिया में भी सरकार की मंशा पर सवाल उठने लगे कि प्रतिबंध ना हटाकर लोकतंत्र का गला क्यों घोंट रही है सरकार. लगातार दवाब से परेशान सरकार ने एक नया मध्यस्थ मैदान में उतारा, मौलीचंद्र शर्मा, जो सरदार पटेल, भैयाजी दाणी और देवरस से मिलने के बाद गुरु गोलवलकर से मिले. निजी हैसियत से उन्होंने 8 प्वॉइंट्स का एक पत्र उन्हें दिया. जिसमें उनके विचार मांगे गए, जैसे संघ का संविधान, राष्ट्रीय झंडा, हिंसा के आरोप, सरसंघचालक की नियुक्ति जैसे विषय थे. जवाब देने में उनकी शास्त्री जी ने भी मदद की थी. गुरु गोलवलकर का बाला साहब देवरस को लिखा पत्र भी बन गया वजह जब ये मध्यस्थता वार्ताएं चल रही थीं, गुरु गोलवलकर ने एक पत्र जेल में किसी के जरिए बाला साहब देवरस को भिजवाया. लेकिन उन दिनों सरकार उनकी हर हरकत पर नजर रखे हुई थी. वो पत्र जेल प्रशासन के हाथ पड़ गया और उसके जरिए सरकार तक पहुंच गया. इस पत्र में गुरु गोलवलकर की भाषा इस तरह की थी कि अगर ये मध्यस्थता भी कामयाब नहीं होती, तो सत्याग्रह से भी बड़ा आंदोलन खड़ा करने की बात थी. सरकार पहले ही संघ से परेशान थी, इस पत्र को पढ़कर उन्हें लगा हो सकता है कि अब तक गांधीवादी तरीके अपना रहा संघ इसे अस्तित्व की लड़ाई बनाकर सरकार के लिए बड़ा खतरा बन जाए. जानकार मानते आए हैं कि सरकार इस पत्र की भाषा और उसके बाद होने वाले परिणामों से डर गई थी. बिना पढ़े ही गुरु गोलवलकर ने कर दिए संविधान पर दस्तखत
इतना बड़ा संगठन जाहिर है बिना संविधान या लिखित नियमों के तो नहीं चल रहा होगा, कहा जाता है कि संविधान की एक लिखित कॉपी हमेशा गुरु गोलवलकर के झोले में रहती थी. फिर भी सरकार की तसल्ली के लिए एक ड्राफ्ट संविधान मौलीचंद्र शर्मा ने जेल से बाहर के संघ के वरिष्ठ स्वयंसेवकों से बनवाया और सिवनी जेल में उसे गुरु गोलवलकर की सहमति के लिए रखा. के आर मलकानी, भिषिकर जैसे कई लेखकों ने लिखा है कि गोलवलकर ने उस पर बिना पढ़े ही दस्तखत कर दिए, मध्यस्थ हैरान था कि आखिर इस व्यक्ति को अपने साथियों पर इतना भरोसा कैसे था. ‘पहले कांग्रेस के फंड दिखाओ, तब हमसे हिसाब मांगो’

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