
शिक्षाविद दीनानाथ बत्रा का निधन, शिक्षा बचाओ आंदोलन के थे सूत्रधार
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शिक्षा बचाओ के राष्ट्रीय संयोजक एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के संस्थापक व अध्यक्ष दीनानाथ बत्रा का जन्म 5 मार्च 1930 को अविभाजित भारत के राजनरपुर जिला डेरा गाजी खान (अब पाकिस्तान में) में हुआ था.
महान शिक्षाविद, आदर्श शिक्षक, शिक्षा बचाओ आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक दीनानाथ बत्रा का 94 वर्ष की उम्र में गुरुवार, 7 नवंबर 2024 को आकस्मिक निधन हो गया है. शिक्षा बचाओ के राष्ट्रीय संयोजक एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के संस्थापक व अध्यक्ष दीनानाथ बत्रा का जन्म 5 मार्च 1930 को अविभाजित भारत के राजनरपुर जिला डेरा गाजी खान (अब पाकिस्तान में) में हुआ था.
वे विद्या भारती के महासचिव भी रह चुके हैं, जो एक राष्ट्रीय स्वयंसेवी संस्था है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ी हुई है. उन्हें शिक्षा में हिंदुत्ववादी विचारों को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है.
टीचर से महामंत्री पद तक 1955 से डीएवी विद्यालय डेरा बस्सी पंजाब के शिक्षक से अपने करियर की शुरुआत करने वाले दीनानाथ बत्रा ने 1965 से 1990 तक कुरुक्षेत्र में प्रिंसिपल पद का दायित्व भी निभाया है. वो अखिल भारतीय हिंदुस्तान स्काउट एंड गाइड के अध्यक्ष पद पर भी रहे हैं. वे विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षण संस्था के महामंत्री भी रहे. राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित दीनानाथ बत्रा को अनेकों संस्थाओं ने उनके शैक्षणिक कार्य के प्रति समर्पण के लिए पुरस्कृत किया है.
उन्होंने शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए देशव्यापी आंदोलन चलाए हैं, जिसकी वजह से राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी भारत केंद्रित शिक्षा को आधार बनाया गया है. उन्हें स्वामी कृष्णानंद सरस्वती सम्मान, स्वामी अखंडानंद सरस्वती सम्मान, भाऊराव देवरस सम्मान जैसे अनेक सम्मानों से नवाजा जा चुका है. कल (शुक्रवार) सुबह 8 बजे से 10 बजे तक उनका पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए नारायण विहार, नई दिल्ली स्थित शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के केंद्रीय कार्यालय में रखा जाएगा.
विचारों को लेकर चर्चा में रहते थे दीनानाथ बत्रा वे अक्सर अपने विचारों के कारण विवादों में रहते हैं. उन्हें इतिहास और पाठ्यक्रम में बदलाव के लिए भी जाना जाता है, जिसके कारण कई विवाद हुए हैं. उन्होंने इतिहास के पाठ्यक्रम में बदलाव की वकालत की है, जिसके अनुसार भारतीय इतिहास को एक हिंदुत्ववादी दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया जाना चाहिए. वे अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा का विरोध करते थे और हिंदी माध्यम को बढ़ावा देते थे. उन्होंने पाठ्यपुस्तकों में बदलाव की मांग की, ताकि उनमें भारतीय संस्कृति और मूल्यों को अधिक महत्व दिया जा सके. उन्होंने राष्ट्रीय और शैक्षिक आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाई है और कई बार जेल भी जा चुके हैं.

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