
शिक्षण संस्थानों में बैन रहेगा हिजाब या पलटेगा हाई कोर्ट का फैसला? लंबी खिंचेगी लड़ाई!
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हिजाब विवाद फिलहाल लंबा खिंचता नजर आ रहा है. सुप्रीम कोर्ट में 2 जजों की बेंच ने गुरुवार को इस मसले पर फैसला सुनाया. लेकिन बंटा हुआ फैसला होने के कारण कोई समाधान नहीं निकल सका. अब सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच के पास ये मसला जाएगा. उम्मीद है कि वहां से ही इसका कोई स्थायी समाधान निकलेगा.
हिजाब विवाद का स्थायी समाधान फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में भी नहीं हो पाया है. इस मसले पर सुनवाई कर रहे दोनों जजों की राय बंटी हुई है. एक तरफ जस्टिस हेमंत गुप्ता ने हिजाब पर बैन को कर्नाटक सरकार का सही कदम बताया है तो वहीं दूसरी तरफ जस्टिस धूलिया ने इसे पसंद का मामला बताते हुए हाई कोर्ट के फैसले पर सवाल खड़े कर दिए.
हिजाब पर बैन का कर्नाटक हाई कोर्ट का फैसला वर्तमान में कायम है, लेकिन अब सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर बैन जारी रहेगा या सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट के फैसले को पलट देगा? इन सभी सवालों के बीच अब हिजाब को लेकर जारी जंग अब लंबी खिंचती नजर आ रही है. गुरुवार को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब सर्वोच्च अदालत की बड़ी बेंच मामले की दोबारा सुनवाई करेगी. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस यूयू ललित इसके लिए नई बेंच का गठन करेंगे.
दोनों जजों की राय में क्या अंतर? इस केस की अध्यक्षता जस्टिस हेमंत गुप्ता कर रहे थे. उन्होंने शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर बैन लगाने के कर्नाटक सरकार के फैसले को सही ठहराया. हालांकि जस्टिस सुधांशु धूलिया ने हिजाब पहनने पर लगाई गई पाबंदी को गलत ठहराया. जस्टिस धूलिया ने कहा कि उच्च न्यायालय ने गलत रास्ता अपनाया है और हिजाब पहनना अंततः पसंद का मामला है, न तो कुछ ज्यादा और न ही कम.
दोनों जजों ने दिए अपने-अपने तर्क
जस्टिस हेमंत गुप्ता ने 136 पेज का फैसला लिखा. वहीं, जस्टिस धूलिया ने 73 पेज में अलग फैसला लिखा. जस्टिस हेमंत गुप्ता ने अपने फैसले में लिखा कि धर्मनिरपेक्षता को अलग तरीके से समझना होगा. धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों में धर्म का अतिक्रमण स्वीकार नहीं किया जा सकता. वहीं, जस्टिस धूलिया ने लिखा कि स्कूलों में अनुशासन जरूरी है, लेकिन स्वतंत्रता और गरिमा की कीमत पर नहीं. दरवाजे पर किसी कॉलेज की छात्रा से हिजाब उतारने की बात कहना उसकी निजता और गरिमा का हनन है.
वॉर रूम से नहीं कर सकते स्कूल की तुलना

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