
शिंदे ने छीन ली उद्धव से सत्ता, जानें 'शिवसेना के नाथ' कैसे बन पाएंगे एकनाथ!
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Maharashtra news: शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के हाथों से महाराष्ट्र की सत्ता छीनने के बाद एकनाथ शिंदे की नजर अब शिवसेना पर अपना वर्चस्व जमाने की है. शिवसेना पर कब्जा जमाने के लिए सिर्फ पार्टी के विधायकों के समर्थन से काम नहीं चलेगा बल्कि पार्टी के संगठन के लोगों का भी विश्वास जीतना होगा. इतना ही नहीं कानूनी पेच भी काफी है. ऐसे में देखना है कि कैसे शिवसेना की कमान कैसे सिंधे अपने हाथों में लेते हैं?
महाराष्ट्र की सत्ता उद्धव ठाकरे के हाथों से छीनकर एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बन चुके हैं और विधानसभा के पटल पर बहुमत की परीक्षा भी पास कर ली है. एकनाथ शिंदे समेत सभी बागी विधायक सदन में यह साबित करने में फिलहाल सफल रहे कि वो शिवसेना के विधायक हैं, लेकिन मामला देश की सबसे बड़ी अदालत में पहुंच चुका है. इस तरह शिंदे खेमे का दावा बाला साहेब ठाकरे की बनाई गई पार्टी शिवसेना पर बना हुआ है, जिसे उद्धव ठाकरे के हाथों से वो छीनने की कवायद में हैं. ऐसे में बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि शिवसेना की कमान कैसे एकनाथ अपने हाथों में ले पाएंगे?
बीजेपी-शिंदे गठबंधन सरकार ने सदन के पटल पर विश्वास मत जीत लिया है. इसी के साथ अब अगली लड़ाई शिवसेना को कब्जे की है. इस तरह चुनाव आयोग तक शिवसेना पार्टी और सिंबल धनुष और तीर पर दावा करने की जंग होगी. हालांकि, विधायकों की संख्या के आधार पर विधानसभा स्पीकर राहुल नार्वेकर ने एकनाथ शिंदे को शिवसेना विधायक दल का नेता माना है, क्योंकि उद्धव ठाकरे खेमे से ज्यादा उनके पास विधायक हैं. इस तरह से शिवसेना में व्हिप का पद भी उद्धव खेमे के बजाय शिंदे गुट के पास चला गया.
शिवसेना पर कब्जा जमाना आसान नहीं!
स्पीकर के इस फैसले के खिलाफ उद्धव खेमे ने सुप्रीम कोर्ट जाकर अपनी गुहार लगाई है, जिसके चलते मामला कानूनी पेच में उलझ गया है. सुप्रीम कोर्ट इस मामले में 11 जुलाई को सुनवाई करेगा. हालांकि, उद्धव से भले ही एकनाथ शिंदे ने सत्ता छीन ली हो, लेकिन शिवसेना पर कब्जा जमाना आसान नहीं है. इसीलिए एकनाथ शिंदे स्पीकर के फैसले से शिवसेना पर अपना दावा ठोक रहे हैं तो शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे तमाम तरह के कानूनी दांवपेचों को समझ कर अपनी पार्टी को बचाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं.
शिवसेना का संविधान है अहम सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता ध्रुव गुप्ता ने कहा कि विधानसभा स्पीकर नार्वेकर ने विधायकों की संख्या बल के आधार पर एकनाथ शिंदे और उनके साथी बागी विधायकों को शिवसेना के विधायक की मान्यता दे दी है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि शिवसेना पार्टी पर शिंदे का अधिकार हो गया. शिवसेना का जो अपना पार्टी संविधान है, उसके आधार पर ही सारे फैसले होंगे. इसलिए यह कहना मुश्किल होगा कि शिवसेना की कमान वर्तमान पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे के हाथ से खिसक कर किसी दूसरे के पास जा सकती है.
ध्रुव गुप्ता कहते हैं कि हर पार्टी का अपना एक संविधान होता है जो चुनाव आयोग के पास रहता है. ऐसे में पार्टी की कमान सिर्फ एक आधार पर नहीं बल्कि कई पहलुओं को ध्यान में रखकर ही तय की जाती है. किसी राजनीतिक पार्टी के विवाद की स्थिति में चुनाव आयोग सबसे पहले यह देखता है कि पार्टी के संगठन और उसके विधायी आधार पर विधायक-सांसद सदस्य किस गुट के साथ कितने हैं. राजनीतिक दल की शीर्ष समीतियां और निर्णय लेने वाली इकाई की भूमिका काफी अहम होती है.

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